वक़्त,
आज फिर तेरी
देहलीज़ से गुजरा
ख्वाब के टुकड़े पड़े थे राह में
चंद साँसे बैठ कर
सोंचा वहाँ
रातरानी फिर से
बो दूँ राह में
खुशबुओं की
फिर फसल लहरायेगी
डाल पर झूले पड़ेंगे प्यार के
फिर हवा जुल्फों से खेलेंगी कहीं
कोयलें छेड़ेंगी राग मल्हार के
फिर मेरे आँखों में आँसू आ गया
दफ्न वो ख़त है
अभी तक सीने में
तुम गई
तो साथ खुशियाँ भी गई
अब कहाँ खुशबू मिलेगी जीने में
रातरानी उग भी जाये
तो भी क्या
वो हवा और कोयलें
देखेंगी तेरा रास्ता !
आज फिर तेरी
देहलीज़ से गुजरा
ख्वाब के टुकड़े पड़े थे राह में
चंद साँसे बैठ कर
सोंचा वहाँ
रातरानी फिर से
बो दूँ राह में
खुशबुओं की
फिर फसल लहरायेगी
डाल पर झूले पड़ेंगे प्यार के
फिर हवा जुल्फों से खेलेंगी कहीं
कोयलें छेड़ेंगी राग मल्हार के
फिर मेरे आँखों में आँसू आ गया
दफ्न वो ख़त है
अभी तक सीने में
तुम गई
तो साथ खुशियाँ भी गई
अब कहाँ खुशबू मिलेगी जीने में
रातरानी उग भी जाये
तो भी क्या
वो हवा और कोयलें
देखेंगी तेरा रास्ता !