"मचान" ख्वाबो और खयालों का ठौर ठिकाना..................© सर्वाधिकार सुरक्षित 2010-2013....कुमार संतोष

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बहुत  तनहाईयाँ  हैं  मेरे  हिस्से  में  चुरा  लो तुम ।
तुम्हारा साथ मेरी तनहाईयों से कुछ तो बेहतर है  ।।

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ख्वाहीशें हैं मजबूरीयों के दामन में लिपटी सी  ।
मुझे मेरी हि किस्मत को अभी और परखना है ।।



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कुछ तुम कहो कुछ हम कहें तो अच्छा है  ।
कट  जाये  ये  सफर यूं  हीं  तो अच्छा है  ।।


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मैने  देखे  हें  बदलते  चेहरे  को  इन्सान   के  ।
क्या फर्क पडता हे कोई याद मुझको क्यों करे ।।


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हर मोङ पर मिल जाते हैं हमदर्द हजारों ।
शायद मेरी बस्ती में अदाकार बहुत हैं  ।।

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ख़ामोशी  की  भी एक ज़ुबान  होती  है !
आँखों में भी अनकही दास्तान होती है !!


बिना  लफ़्ज़ों  के  सुने  कोई  दिल की ज़ुबान !
मगर जिंदगी कब हर वक़्त मेहरबान होती है !!

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हसने और हसाने की बात करते हो   !
गम में मुस्कुराने की बात करते हो  !!


जब मेरे रंज़ो महन का इल्म नही    !
क्यों दिल जलाने की बात करते हो !!


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