वक़्त,
आज फिर तेरी
देहलीज़ से गुजरा
ख्वाब के टुकड़े पड़े थे राह में
चंद साँसे बैठ कर
सोंचा वहाँ
रातरानी फिर से
बो दूँ राह में
खुशबुओं की
फिर फसल लहरायेगी
डाल पर झूले पड़ेंगे प्यार के
फिर हवा जुल्फों से खेलेंगी कहीं
कोयलें छेड़ेंगी राग मल्हार के
फिर मेरे आँखों में आँसू आ गया
दफ्न वो ख़त है
अभी तक सीने में
तुम गई
तो साथ खुशियाँ भी गई
अब कहाँ खुशबू मिलेगी जीने में
रातरानी उग भी जाये
तो भी क्या
वो हवा और कोयलें
देखेंगी तेरा रास्ता !
आज फिर तेरी
देहलीज़ से गुजरा
ख्वाब के टुकड़े पड़े थे राह में
चंद साँसे बैठ कर
सोंचा वहाँ
रातरानी फिर से
बो दूँ राह में
खुशबुओं की
फिर फसल लहरायेगी
डाल पर झूले पड़ेंगे प्यार के
फिर हवा जुल्फों से खेलेंगी कहीं
कोयलें छेड़ेंगी राग मल्हार के
फिर मेरे आँखों में आँसू आ गया
दफ्न वो ख़त है
अभी तक सीने में
तुम गई
तो साथ खुशियाँ भी गई
अब कहाँ खुशबू मिलेगी जीने में
रातरानी उग भी जाये
तो भी क्या
वो हवा और कोयलें
देखेंगी तेरा रास्ता !
दफ्न वो ख़त है
जवाब देंहटाएंअभी तक सीने में
तुम गई
तो साथ खुशियाँ भी गई
विरह वेदना की मार्मिक अभिव्यक्ति
सही है भाई, अब जीने में खुशबू नहीं मिलने वाली
जवाब देंहटाएंBahut dard hai! Nihayat sundar rachana!
जवाब देंहटाएंबेहद खूब सुरत रात की रानी की खुसबू के समान आपकी कविता --अभिनंदन |
जवाब देंहटाएंबहुत भावपूर्ण अभिव्यक्ति..
जवाब देंहटाएंकेवल राम जी, योगेन्द्र पाल जी, वंदना जी, क्षमा जी, दर्शन कौर जी, कैलाश शर्मा जी आप सभी का तहे दिल से शुक्रिया !
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढिया अभिव्यक्ति.
जवाब देंहटाएंदर्द से भीगे से अलफ़ाज़.
सलाम
वाह...बेहतरीन रचना...
जवाब देंहटाएंनीरज
सगेबोब जी, नीरज जी बहुत बहुत आभार !!
जवाब देंहटाएंफिर मेरे आँखों में आँसू आ गया
जवाब देंहटाएंदफ्न वो ख़त है
अभी तक सीने में
तुम गई
तो साथ खुशियाँ भी गई
बेहतरीन रचना .....
वाकई बड़ी ऊंची कविता है मचान पर बैठ लिखी गई
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