"मचान" ख्वाबो और खयालों का ठौर ठिकाना..................© सर्वाधिकार सुरक्षित 2010-2013....कुमार संतोष

रविवार, 13 फ़रवरी 2011

आदतन

वक़्त,
आज फिर तेरी
देहलीज़ से गुजरा
ख्वाब के टुकड़े पड़े थे राह में
चंद साँसे बैठ कर
सोंचा वहाँ
रातरानी फिर से

बो दूँ राह में
खुशबुओं की
फिर फसल लहरायेगी
डाल पर झूले पड़ेंगे प्यार के
फिर हवा जुल्फों से खेलेंगी कहीं
कोयलें छेड़ेंगी राग मल्हार के
 

फिर मेरे आँखों में आँसू आ गया
दफ्न वो ख़त है
अभी तक सीने में
तुम गई
तो साथ खुशियाँ भी गई
अब कहाँ खुशबू मिलेगी जीने में
रातरानी उग भी जाये
तो भी क्या
वो हवा और कोयलें
देखेंगी तेरा रास्ता !

11 टिप्‍पणियां:

  1. दफ्न वो ख़त है
    अभी तक सीने में
    तुम गई
    तो साथ खुशियाँ भी गई

    विरह वेदना की मार्मिक अभिव्यक्ति

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  2. सही है भाई, अब जीने में खुशबू नहीं मिलने वाली

    जवाब देंहटाएं
  3. बेहद खूब सुरत रात की रानी की खुसबू के समान आपकी कविता --अभिनंदन |

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत भावपूर्ण अभिव्यक्ति..

    जवाब देंहटाएं
  5. केवल राम जी, योगेन्द्र पाल जी, वंदना जी, क्षमा जी, दर्शन कौर जी, कैलाश शर्मा जी आप सभी का तहे दिल से शुक्रिया !

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत ही बढिया अभिव्यक्ति.
    दर्द से भीगे से अलफ़ाज़.
    सलाम

    जवाब देंहटाएं
  7. सगेबोब जी, नीरज जी बहुत बहुत आभार !!

    जवाब देंहटाएं
  8. फिर मेरे आँखों में आँसू आ गया
    दफ्न वो ख़त है
    अभी तक सीने में
    तुम गई
    तो साथ खुशियाँ भी गई

    बेहतरीन रचना .....

    जवाब देंहटाएं
  9. वाकई बड़ी ऊंची कवि‍ता है मचान पर बैठ लि‍खी गई

    जवाब देंहटाएं

आपकी प्रतिक्रिया बहुमूल्य है !

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