"मचान" ख्वाबो और खयालों का ठौर ठिकाना..................© सर्वाधिकार सुरक्षित 2010-2013....कुमार संतोष

शनिवार, 30 जुलाई 2011

मैं शायर हूँ, मुझे पत्थर दिल ना समझ लेना

"ज़ख्म ख़ामोश हैं जो हमने खाऐ थे ज़माने से

उसे हर पल कुरेदा ज़िन्दगी ने सौ बहाने से

मैं शायर हूँ, मुझे पत्थर दिल ना समझ लेना

कोई भी टूट सकता है इतना आज़माने से..."

मंगलवार, 26 जुलाई 2011

रात सरगोशी से जब ख्वाब चले आते हैं

रात सरगोशी से जब ख्वाब चले आते हैं
बीते  लम्हे वो  बेहिसाब  चले  आते  हैं

लोग  लाते   हैं   तेरे  पास किमती तोफ़े
ले कर हांथो में हम गुलाब चले आते हैं

टूटे प्यालो का गम होता है तो होता रहे
आँखो से पी कर हम शराब चले आते हैं

रोज़ मिलते हैं बन के गैर मुझे महफ़िल में
मुझे हर बार जलाने, जनाब चले आते हैं

बुधवार, 6 जुलाई 2011

दर्द जब हद से गुजर जाये तो हँस देता हूँ

दर्द  जब हद  से गुजर जाये तो हँस देता हूँ
गम जब दिल में उतर जाये तो हँस देता हूँ

अब तो महफ़िल में डसती है तन्हाई मुझको
कोई मुझसा मुझे मिल जाये तो हँस देता हूँ

जिंदगी  का  मैं  सताया  हूँ  मुझे  गर   कोई
ये  कहता  है  तू  मर  जाये  तो  हँस देता हूँ

वक़्त  के  राज़  छुपाये  हैं  कई इस दिल में
राज़ जब आँख से बह  जाये तो हँस देता हूँ

तास के पत्तों का बनता हूँ मकां रफ्ता रफ्ता 
शक की आंधी में बिखर जाये तो हँस देता हूँ
  
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