"मचान" ख्वाबो और खयालों का ठौर ठिकाना..................© सर्वाधिकार सुरक्षित 2010-2013....कुमार संतोष

शुक्रवार, 21 जनवरी 2011

बेवफा जिंदगी

बेवफा जिंदगी 
ढूंढता दरबदर
इस शहर, उस शहर 
गली-गली, डगर-डगर 
ठोकरें मिली फकत
था आंसुओं का एक नगर
न जाने कब डुबो गई
वो नफरतों की एक लहर 
वो वक़्त था, सशक्त था 
बहता रगों में रक्त सा 
कुछ दास्ताँ थी अनकही 
पर कहने से लगता था डर
साहिल पर गीली रेत का
ख्वाबों में था छोटा सा घर 
मासूम सा एक ख्वाब था 
डुबो गई जिसे लहर
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