"मचान" ख्वाबो और खयालों का ठौर ठिकाना..................© सर्वाधिकार सुरक्षित 2010-2013....कुमार संतोष

शुक्रवार, 21 जनवरी 2011

बेवफा जिंदगी

बेवफा जिंदगी 
ढूंढता दरबदर
इस शहर, उस शहर 
गली-गली, डगर-डगर 
ठोकरें मिली फकत
था आंसुओं का एक नगर
न जाने कब डुबो गई
वो नफरतों की एक लहर 
वो वक़्त था, सशक्त था 
बहता रगों में रक्त सा 
कुछ दास्ताँ थी अनकही 
पर कहने से लगता था डर
साहिल पर गीली रेत का
ख्वाबों में था छोटा सा घर 
मासूम सा एक ख्वाब था 
डुबो गई जिसे लहर

18 टिप्‍पणियां:

  1. अतिसुन्दर भावाव्यक्ति , बधाई के पात्र है

    जवाब देंहटाएं
  2. आप सभी का बहुत बहुत शुक्रिया

    जवाब देंहटाएं
  3. चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 25-01-2011
    को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..

    http://charchamanch.uchcharan.com/

    जवाब देंहटाएं
  4. बेहतरीन ...उम्दा भावाभिव्यक्ति .... बस ऐसी ही है ये जिंदगी.....

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  5. बहुत सुन्दर भावो को समेटा है।

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  6. बहुत ही सुंदर भाव.आप की कलम को सलाम

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  7. बहुत सुन्दर प्रवाहमयी अभिव्यक्ति....

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  8. वो वक्त था
    सच ही तो है वक्त के आगे कौन सिर उठा सका है..
    सुंदर रचना

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  9. अतिसुन्दर भावाव्यक्ति , बधाई|

    जवाब देंहटाएं
  10. ख्वाबों में था छोटा सा घर
    मासूम सा एक ख्वाब था
    डुबो गई जिसे लहर

    ऐसे ना जाने कितने भाव हैं ..जो खो जाते हैं ..वक़्त की गर्द में ...बहुत भावपूर्ण रचना है ...आपका आभार
    कुछ इसी तरह की रचना मेरे ब्लॉग पर भी " एक दिन जिन्दगी " शुक्रिया

    जवाब देंहटाएं
  11. @ Kailash C Sharma जी,
    @ वीना जी,
    @ Patali-The-Village जी,
    @ संजय भास्कर जी,
    @ केवल राम जी,

    आप सभी का तहे दिल से बहुत बहुत शुक्रिया !!

    जवाब देंहटाएं
  12. वो वक़्त था, शशक्त था

    क्या बात कही है....वक्त के आगे कौन नहीं झुका....
    अच्छी रचना....

    जवाब देंहटाएं
  13. बहुत खूब ....!!

    बहुत अच्छी नज़्म ....

    लिखते वक़्त शब्दों को एक दो बार जरुर जांच लिया कीजिये ....
    शशक्त- सशक्त
    साहील - साहिल

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