"मचान" ख्वाबो और खयालों का ठौर ठिकाना..................© सर्वाधिकार सुरक्षित 2010-2013....कुमार संतोष

रविवार, 13 फ़रवरी 2011

आदतन

वक़्त,
आज फिर तेरी
देहलीज़ से गुजरा
ख्वाब के टुकड़े पड़े थे राह में
चंद साँसे बैठ कर
सोंचा वहाँ
रातरानी फिर से

बो दूँ राह में
खुशबुओं की
फिर फसल लहरायेगी
डाल पर झूले पड़ेंगे प्यार के
फिर हवा जुल्फों से खेलेंगी कहीं
कोयलें छेड़ेंगी राग मल्हार के
 

फिर मेरे आँखों में आँसू आ गया
दफ्न वो ख़त है
अभी तक सीने में
तुम गई
तो साथ खुशियाँ भी गई
अब कहाँ खुशबू मिलेगी जीने में
रातरानी उग भी जाये
तो भी क्या
वो हवा और कोयलें
देखेंगी तेरा रास्ता !

बुधवार, 9 फ़रवरी 2011

पलछिन

मैं और मेरी हमनफस
(1) अंकुर.......
कल शाम 
खयालो की पोटली 
भिगोई थी
आज देखा तो
उनमे अंकुर निकल आये हैं
आज शाम जब मिलोगी
तो चाशनी के साथ
तुम्हे परोसुंगा !


(२) निशानी.......
याद है 
तुम्हे चूड़ियाँ पहनाते वक़्त
मेरी उंगुली कट गई थी
वो जख्म
जिस पर तुमने
मलहम लगाया था
उसे मैंने
फिर से कुरेद दिया है
तुम्हारे जाने के बाद
कुछ तो तुम्हारी निशानी होनी चाहिए !
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