संता कुछ परेशान सा घूम रहा था
अपने मन में जाने क्या सवाल बुन रहा था
पुरे घर में भटक रहा था
एक सवाल जो उसकी खोपड़ी में अटक रहा था
कि सारे चुटकुले संता पर ही क्यों बनते हैं
अरे दुनीयाँ में और भी तो लोग हैं
क्या हमी सिर्फ चुटकुले के योग्य हैं
हर चुटकुले हर बात में हमें ही घुसेड दिया जाता है
किसी की बेईजती करनी हो तो हमें ही भेड़ दिया जाता है
तभी संता की पत्नी मटकते हुए आई
मुस्कुराई फिर जोर से चिल्लाई
मैं तो तुमसे भर पाई
सुबह से एक भी काम नहीं किया
तुमने मुझे कौन सा सुख दिया
महीने हो गए मायके गए
कम से कम मायके ही घुमा लाते
मुन्ने ने बिस्तर पर पोट्टी की
पोट्टी वहीँ छोड़ दी
कम से कम मुन्ने को ही धुला लाते
पडोसी से सीखो
हर महीने अपनी बीवी को नए जेवर दिलाता है
देर रात तक बीवी के पैर दवाता है
सुबह से देख रही हूँ इधर से उधर मचल रहे हो
आखिर ऐसी कौन सी ग़ज़ल लिख रहे हो
संता बोला अरी बंतो मैं अपने ही सवाल से परेशान हूँ
तू अपना ही राग गा रही है
मदत करती हो तो बता वरना क्यों मेरा दिमाग खा रही है
हर बात हर चुटकुले में मैं दाखिल हूँ कहीं न कहीं
कोई ऐसी बात बता जिसमे मैं शामिल नहीं
बंतो बोली अजी वैसे तो हार बात आपसे होकर गुजरने वाली है
मगर एक बात जिसमे आप शामिल नहीं हो वो ये है जो बताने वाली है
हौसला रखना मैं बिलकुल सच कहने वाली हूँ
में एक और बच्चे की माँ बनने वाली हूँ
बहुत ही अच्छा लिखा है आपने। संता की व्यथा वाकई गौर करने लायक है। बेचारा संता।
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग पर भी आयें। धन्यवाद
http://tikhatadka.blogspot.com/
बहुत अच्छी कविता है।
जवाब देंहटाएंपढकर बहुत अच्छा लगा
हमारे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
मालीगांव
साया
लक्ष्य
बहुत बढ़िया लिखा है ......
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