ज़िंदगी को हादसे की तरह देखा
कभी छुआ कभी फेंका
कल्पनाओं की लड़ियाँ सजाता रहा
खुद से दूर जाती चीज़ को बुलाता रहा
दूर तक देर तक
अनजाने चेहरे से अपना सवाल दोहराता रहा
सब घूरते थे गुज़र जाते थे
मेरे सपने जो अनमोल थे मेरे लिए
गिरते थे टूट कर बिखर जाते थे
खूबसूरत अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंज़िंदगी को हादसे की तरह देखा
जवाब देंहटाएंकभी छुआ कभी फेंका
कल्पनाओं की लड़ियाँ सजाता रहा
खुद से दूर जाती चीज़ को बुलाता रहा
Wah! Kya anoothe khayalaat hain!
behad khoobsurat.
जवाब देंहटाएंbahut hee khoobsurat rachna...badhayi
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना 02-11-2010 मंगलवार को ली गयी है ...
जवाब देंहटाएंकृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया
आप सभी का बहुत बहुत शुक्रिया
जवाब देंहटाएंgahan arthon ka prativimb
जवाब देंहटाएंaaj aur kal her ek pal...
जवाब देंहटाएंvatvriksh ke liye yah rachna bhejen rasprabha@gmail.com per parichay aur tasweer ke saath
खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
जवाब देंहटाएंसादर
डोरोथी.
बहुत जबरदस्त!
जवाब देंहटाएंसपनो को तो संभालना होगा
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना