"मचान" ख्वाबो और खयालों का ठौर ठिकाना..................© सर्वाधिकार सुरक्षित 2010-2013....कुमार संतोष

बुधवार, 9 फ़रवरी 2011

पलछिन

मैं और मेरी हमनफस
(1) अंकुर.......
कल शाम 
खयालो की पोटली 
भिगोई थी
आज देखा तो
उनमे अंकुर निकल आये हैं
आज शाम जब मिलोगी
तो चाशनी के साथ
तुम्हे परोसुंगा !


(२) निशानी.......
याद है 
तुम्हे चूड़ियाँ पहनाते वक़्त
मेरी उंगुली कट गई थी
वो जख्म
जिस पर तुमने
मलहम लगाया था
उसे मैंने
फिर से कुरेद दिया है
तुम्हारे जाने के बाद
कुछ तो तुम्हारी निशानी होनी चाहिए !

14 टिप्‍पणियां:

  1. संतोष जी ,मेरे ब्लोक पर आने का शुक्रिया !पहली बार आई हु बड़ी प्यारी कविता लिखते हे आप --निशानी बहुत पसंद आई

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  2. @ दर्शन कौर जी मेरे ब्लॉग पर आने का और मेरी कविताओं को पसंद करने का बहुत बहुत शुक्रिया ! यों ही आते रहिये और अपने बहुमूल्य टिप्पणियों और सुझाव से अवगत कराते रहिये !
    @ क्षमा जी आपका बहुत-बहुत आभार !

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  3. प्यार का एहसास जिंदा रखने का सुन्दर अंदाज़ ।

    जवाब देंहटाएं
  4. आदरणीय संतोष जी
    दोनों बहुत गहरे अर्थ संप्रेषित करती हैं ..शुक्रिया

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  5. @ दिव्या जी, @ केवल राम जी, @ आना जी आप सभी का बहुत बहुत आभार !

    जवाब देंहटाएं
  6. प्रिय बंधुवर संतोष कुमार जी
    अभिवादन !

    दोनों कविताएं अच्छी लगीं , सुंदर भावों की अभिव्यक्ति … जो मन पर अपनी छाप भी छोड़ती है ।

    बसंत पंचमी सहित बसंत ॠतु की हार्दिक बधाई और मंगलकामनाएं !
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  7. संतोष कुमार जी
    नमस्कार !
    ..........दिल को छू लेने वाली प्रस्तुती

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  8. दोनों कवितायें बहुत सुन्दर, बहुत प्यारी.
    मेरे ब्लॉग पर आने के लिए आभार.

    जवाब देंहटाएं
  9. राजेन्द्र स्वर्णकार जी, संजय भास्कर जी, कुसुमेश जी आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद मेरी इस रचना को पसंद करने का !

    जवाब देंहटाएं

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