"मचान" ख्वाबो और खयालों का ठौर ठिकाना..................© सर्वाधिकार सुरक्षित 2010-2013....कुमार संतोष

शनिवार, 30 जुलाई 2011

मैं शायर हूँ, मुझे पत्थर दिल ना समझ लेना

"ज़ख्म ख़ामोश हैं जो हमने खाऐ थे ज़माने से

उसे हर पल कुरेदा ज़िन्दगी ने सौ बहाने से

मैं शायर हूँ, मुझे पत्थर दिल ना समझ लेना

कोई भी टूट सकता है इतना आज़माने से..."

6 टिप्‍पणियां:

  1. ज़ख्म ख़ामोश हैं जो हमने खाऐ थे ज़माने से

    उसे हर पल कूरेदा ज़िन्दगी ने सौ बहाने से

    मैं शायर हूँ, मुझे पत्थर दिल ना समझ लेना

    कोई भी टूट सकता है इतना आज़माने से
    kya kamaal kee rachana hai!

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  2. waha bahut khub likha hai aapne ........


    बार बार अगर प्यार हो सकता है
    तो दिल भी बार बार टूटेगा ही ........आभार

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  3. बहुत खूब ... गम का दरिया समेट दिया है इस शेर में ...

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  4. बहुत बहुत शुक्रिया दिगम्बर नासवा जी !

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आपकी प्रतिक्रिया बहुमूल्य है !

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