मचान
"मचान" ख्वाबो और खयालों का ठौर ठिकाना....!
गुरुवार, 12 जनवरी 2012
गुरुवार, 29 दिसंबर 2011
एक ख़्वाब जो पलकों पर ठहर जाता है
एक ख़्वाब जो पलकों पर ठहर जाता है
तेरी याद बन के आंसू सा बिखर जाता है
एक लम्हे में हज़ारों पल गुजर जाते हैं
एक पल में कई लम्हा संवर जाता है
वो भी हंसता है साथ जब हंसता हूँ मैं
जब रोता हूँ तो वो जाने किधर जाता है
जब रोता हूँ तो वो जाने किधर जाता है
जुदा होता हूँ तो ख्यालों में चला जाता हूँ
वो जुदा हो के अपने घर चला जाता है
बात करता है मज़ाक में बिछड़ जाने की
दिल हर बार इस मज़ाक से डर जाता है
हज़ारों कोशिशें कर ली मनाने की उसे
लोग कहते हैं कि जाने दे अगर जाता है
है अगर प्यार तेरा सच्चा तो लौट आऐगा
फरेब एक उमर बाद तो मर जाता है
दर्द-ऐ-दिल दिल में ही रहने दो "कुमार" तुम इसको
ये उभर जाऐ तो इसका भी असर जाता है
शनिवार, 24 दिसंबर 2011
अनमने से ख़याल
कुछ अनसुलझे, अनमने से ख़याल यूँ ही ज़हन में बरस जाते हैं...और दस्तक दे जाते हैं उन सोई हुई, डरी सी, सहमी हुई यादों को जिन्हें फिर से जीना एक युग गुजर जाने के समान है !
आज भी मैं उन पगडंडियों पर से रोज़ गुजरता हूँ, जहाँ बरसो पहले तुम्हारे पांव में कांटा चुभा था !
अब वो कांटा मेरे पांव में रोज़ चुभता है..... ये चुभन ही मेरे दर्द को सकूं पहुचाते हैं.......!
जिंदगी तुझसे तो कुछ गिला नहीं,
जिसे दिल से चाहा बस वो मिला नहीं,
यूँ तो हज़ारो लोग जिंदगी में मिले,
कोई दिल से न मिला, किसी से दिल मिला नहीं !
भुलना मुशकिल है उसे जो मुझे भुला गया,
हो के मुझसे दूर जो मुझको रूला गया,
ख़ुदा करे वो ख़ुश रहे जहां भी रहे,
कोई तो सूने दिल में कलियाँ खिला गया !
बुधवार, 21 दिसंबर 2011
ख्वाबों में चले आओ
तुम्हे देखे बिना गुजरेगा क्या ये भी साल, लगता है
तुम्हारा ज़िक्र तुम्हारी बात जब आती है महफ़िल में
आईने पर उदासी देखना भी क्यों कमाल लगता है
तुम्हारे अक्स से करता हूँ बातें तन्हा स्याह रातों में
तुम्हारे अक्स से बेहतर क्यों तुम्हारा ख़याल लगता है
चांदनी रात कट जाती है यूँ तो, अक्सर जागते तन्हा
अश्क से भीगा हुआ तकिया मुझे क्यों रुमाल लगता है
कोई जब पूछता, कैसे जीते हो "संतोष" उसके बिन तन्हा
हँसी में टाल देता हूँ मुश्किल बहुत ये सवाल लगता है
गुरुवार, 15 दिसंबर 2011
तुम्हे भी याद सताती होगी
तुम्हे भी याद सताती होगी
पुरवईया जब आती होगी
अम्बिया की डाली पर बैठी
जब भी कोयल गाती होगी
सांझ ढले जब चाँद फलक पे
चुपके से आ जाता होगा
घर, आँगन तुलसी के आगे
तुम जब दीप जलाती होगी
तुम्हे भी याद सताती होगी
पुरवईया जब आती होगी
जब मंदिर में फूल चढाने
नंगे पावं बढाती होगी
जब ऊँची घंटी तक तेरे
हाँथ नहीं पहुचते होंगे
पंडित से लगवाने टीका
जब तू सर को झुकाती होगी
अपने संग मुझे न पाकर
आँख तेरी भर जाती होगी
तुम्हे भी याद सताती होगी
पुरवईया जब आती होगी
हाँथ पे मेहँदी से जब सखियाँ
नाम मेरा लिख जाती होंगी
तेरा दुपट्टा जब भी सर से
काँधे पर ढल जाता होगा
और आंटे से सने हाँथ से
रोटी जब तू बनाती होगी
आँचल को सर पर रखने को
जब आवाज़ लगाती होगी
तुम्हे भी याद सताती होगी
पुरवईया जब आती होगी
जब माथे पर ले कर मटका
पनघट से तुम आती होगी
जब भी सावन आता होगा
झूले जब भी पड़ते होंगे
संग सखियों के बैठ हिंडोले
जब तुम पींग बढाती होगी
दूर कहीं बंसी की धुन फिर
मेरी याद दिलाती होगी
तुम्हे भी याद सताती होगी
पुरवईया जब आती होगी
बारिश के मौसम में जब
बादल से बूंद बरसती होगी
आँगन, गलियां, खेत, गाँव जब
पानी से भर जाते होंगे
और जाड़े की कड़क ठण्ड में
सर्दी जब बढ़ जाती होगी
बैठ अंगीठी के आगे तुम
जब जब आग सुलगाती होगी
तुम्हे भी याद सताती होगी
पुरवईया जब आती होगी
अम्बिया की डाली पर बैठी
जब भी कोयल गाती होगी
पुरवईया जब आती होगी
अम्बिया की डाली पर बैठी
जब भी कोयल गाती होगी
सांझ ढले जब चाँद फलक पे
चुपके से आ जाता होगा
घर, आँगन तुलसी के आगे
तुम जब दीप जलाती होगी
तुम्हे भी याद सताती होगी
पुरवईया जब आती होगी
जब मंदिर में फूल चढाने
नंगे पावं बढाती होगी
जब ऊँची घंटी तक तेरे
हाँथ नहीं पहुचते होंगे
पंडित से लगवाने टीका
जब तू सर को झुकाती होगी
अपने संग मुझे न पाकर
आँख तेरी भर जाती होगी
तुम्हे भी याद सताती होगी
पुरवईया जब आती होगी
हाँथ पे मेहँदी से जब सखियाँ
नाम मेरा लिख जाती होंगी
तेरा दुपट्टा जब भी सर से
काँधे पर ढल जाता होगा
और आंटे से सने हाँथ से
रोटी जब तू बनाती होगी
आँचल को सर पर रखने को
जब आवाज़ लगाती होगी
तुम्हे भी याद सताती होगी
पुरवईया जब आती होगी
जब माथे पर ले कर मटका
पनघट से तुम आती होगी
जब भी सावन आता होगा
झूले जब भी पड़ते होंगे
संग सखियों के बैठ हिंडोले
जब तुम पींग बढाती होगी
दूर कहीं बंसी की धुन फिर
मेरी याद दिलाती होगी
तुम्हे भी याद सताती होगी
पुरवईया जब आती होगी
बारिश के मौसम में जब
बादल से बूंद बरसती होगी
आँगन, गलियां, खेत, गाँव जब
पानी से भर जाते होंगे
और जाड़े की कड़क ठण्ड में
सर्दी जब बढ़ जाती होगी
बैठ अंगीठी के आगे तुम
जब जब आग सुलगाती होगी
तुम्हे भी याद सताती होगी
पुरवईया जब आती होगी
अम्बिया की डाली पर बैठी
जब भी कोयल गाती होगी
शुक्रवार, 2 दिसंबर 2011
खुश्क पत्तों का मुकद्दर ले कर
सोमवार, 28 नवंबर 2011
अनदेखे ख्वाब
तुम्हारे साथ के
कुछ भीगे सावन
अब भी गीले पड़े हैं
उम्र गुजर रही है
मगर होंठ
अब भी सिले पड़े हैं
कुछ चाहतों के दबे ख़त
कुछ ख्वाहिशों की अधूरी
ग़ज़ल
रात के दुसरे पहर में
अनदेखे ख्वाब
सिसक उठते हैं
और आँगन के
गमले में
पोधों के पत्ते
अब तक पीले पड़ें हैं
तुम्हारा नाम
नीली स्याही से
मेरी हथेलियों में
अब भी मिटा मिटा सा है
मुझे नहीं पता
मेरी किस्मत में तुम
कितनी हांसिल हो
चलो दूर सही
तुम मेरी हिचकियों में
अब भी शामिल हो !!
कुछ भीगे सावन
अब भी गीले पड़े हैं
उम्र गुजर रही है
मगर होंठ
अब भी सिले पड़े हैं
कुछ चाहतों के दबे ख़त
कुछ ख्वाहिशों की अधूरी
ग़ज़ल
रात के दुसरे पहर में
अनदेखे ख्वाब
सिसक उठते हैं
और आँगन के
गमले में
पोधों के पत्ते
अब तक पीले पड़ें हैं
तुम्हारा नाम
नीली स्याही से
मेरी हथेलियों में
अब भी मिटा मिटा सा है
मुझे नहीं पता
मेरी किस्मत में तुम
कितनी हांसिल हो
चलो दूर सही
तुम मेरी हिचकियों में
अब भी शामिल हो !!
शुक्रवार, 25 नवंबर 2011
बहुत तन्हाईयाँ हैं मेरे हिस्से में...
बहुत तन्हाईयाँ हैं मेरे हिस्से में चुरा लो तुम
तुम्हारा साथ मेरी तनहाइयों से कुछ तो बेहतर है
ज़िन्दगी कब तलक देगी मुझे उपहार में धोका
चलो धोका सही पर ज़िन्दगी से कुछ तो बेहतर है
कभी बारिश कभी झूले कभी शबनम का मौसम था
चलो सब नम गए लेकिन किसी के गम से बेहतर है
है आदत हमको पीने की चलो मन मगर समझो
ये आदत यूँ ही रहने दो ये आदत हम से बेहतर है
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