"मचान" ख्वाबो और खयालों का ठौर ठिकाना..................© सर्वाधिकार सुरक्षित 2010-2013....कुमार संतोष

गुरुवार, 12 जनवरी 2012

तुमने कुछ इस तरह से देखा


(१) 
बहाने  बहाने  से  तेरी  बात   करते   हैं
सारे  ज़माने   से  तेरी   बात  करते    हैं
जब   तनहाई   हद   से   बढ़   जाती  हैं
इस दिल  दीवाने  से  तेरी बात करते हैं
 

(2)
तुमने  कुछ  इस  तरह  से  देखा  की  सांस कुछ थम सी गई
गुजरे हुए पल आँखों से यूँ छलके की आँख कुछ नम सी गई
तेरे वापस लौट आने  के  इंतज़ार में सावन कुछ ऐसा बरसा
बरसात  आँखों  से  बेशुमार हुई  और गालो पर जम सी गई 



गुरुवार, 29 दिसंबर 2011

एक ख़्वाब जो पलकों पर ठहर जाता है


एक    ख़्वाब    जो    पलकों    पर    ठहर  जाता   है
तेरी   याद   बन  के    आंसू   सा   बिखर   जाता   है 

 एक   लम्हे    में    हज़ारों    पल   गुजर    जाते   हैं 
एक    पल    में    कई    लम्हा   संवर    जाता    है

वो    भी   हंसता    है   साथ   जब    हंसता   हूँ   मैं
जब    रोता    हूँ   तो   वो   जाने   किधर   जाता   है

जुदा    होता   हूँ   तो   ख्यालों   में   चला   जाता  हूँ
वो   जुदा    हो    के    अपने   घर   चला   जाता   है

बात   करता   है   मज़ाक   में   बिछड़   जाने    की
दिल    हर   बार  इस   मज़ाक   से   डर   जाता   है

हज़ारों     कोशिशें    कर    ली   मनाने    की   उसे
लोग    कहते   हैं  कि   जाने   दे   अगर   जाता   है

है  अगर   प्यार   तेरा   सच्चा  तो   लौट  आऐगा
फरेब    एक    उमर    बाद   तो    मर    जाता    है

दर्द-ऐ-दिल  दिल  में ही  रहने दो "कुमार" तुम इसको
ये   उभर   जाऐ   तो    इसका   भी   असर   जाता  है

शनिवार, 24 दिसंबर 2011

अनमने से ख़याल

कुछ अनसुलझे, अनमने से ख़याल यूँ ही ज़हन में बरस जाते हैं...और दस्तक दे जाते हैं उन सोई हुई, डरी सी, सहमी हुई यादों को जिन्हें फिर से जीना एक युग गुजर जाने के समान है !
आज भी मैं उन पगडंडियों पर से रोज़ गुजरता हूँ, जहाँ बरसो पहले तुम्हारे पांव में कांटा चुभा था !
अब वो कांटा मेरे पांव में रोज़ चुभता है..... ये चुभन ही मेरे दर्द को सकूं पहुचाते हैं.......!




 जिंदगी     तुझसे     तो     कुछ      गिला     नहीं,
जिसे    दिल    से   चाहा    बस   वो  मिला   नहीं,
यूँ     तो     हज़ारो    लोग    जिंदगी    में    मिले, 
कोई  दिल   से   न  मिला, किसी से दिल मिला नहीं !





भुलना मुशकिल है उसे जो मुझे भुला गया,
हो  के  मुझसे  दूर  जो  मुझको  रूला  गया,
ख़ुदा   करे   वो  ख़ुश   रहे   जहां    भी   रहे,
कोई तो सूने दिल  में  कलियाँ  खिला गया !

बुधवार, 21 दिसंबर 2011

ख्वाबों में चले आओ




मुनासिब हो तो ख्वाबों में चले आओ तुम पल भर को
तुम्हे देखे बिना  गुजरेगा क्या ये भी  साल, लगता  है

तुम्हारा ज़िक्र  तुम्हारी  बात जब आती है महफ़िल में
आईने  पर  उदासी  देखना  भी क्यों  कमाल  लगता है

तुम्हारे अक्स  से करता  हूँ बातें  तन्हा स्याह रातों  में
तुम्हारे अक्स से बेहतर क्यों तुम्हारा ख़याल लगता है

चांदनी रात कट जाती  है  यूँ तो,  अक्सर  जागते तन्हा
अश्क से भीगा हुआ तकिया मुझे क्यों रुमाल लगता है

कोई जब पूछता, कैसे जीते हो "संतोष" उसके बिन तन्हा
हँसी   में  टाल देता हूँ  मुश्किल  बहुत ये सवाल लगता है

गुरुवार, 15 दिसंबर 2011

तुम्हे भी याद सताती होगी

तुम्हे भी याद सताती होगी
पुरवईया जब आती होगी
अम्बिया की डाली पर बैठी
जब भी कोयल गाती होगी
सांझ ढले जब चाँद फलक पे
चुपके से आ जाता होगा
घर, आँगन तुलसी के आगे
तुम जब दीप जलाती होगी

तुम्हे भी याद सताती होगी
पुरवईया जब आती होगी

जब मंदिर में फूल चढाने
नंगे पावं बढाती होगी
जब ऊँची घंटी तक तेरे
हाँथ नहीं पहुचते होंगे
पंडित से लगवाने टीका
जब तू सर को झुकाती होगी
अपने संग मुझे न पाकर
आँख तेरी भर जाती होगी
   
तुम्हे भी याद सताती होगी
पुरवईया जब आती होगी

हाँथ पे मेहँदी से जब सखियाँ
नाम मेरा लिख जाती होंगी 
तेरा दुपट्टा जब भी सर से
काँधे पर ढल जाता होगा
और आंटे से सने हाँथ से
रोटी जब तू बनाती होगी
आँचल को सर पर रखने को
जब आवाज़ लगाती होगी

तुम्हे भी याद सताती होगी
पुरवईया जब आती होगी

जब माथे पर ले कर मटका
पनघट से तुम आती होगी
जब भी सावन आता होगा
झूले जब भी पड़ते होंगे
संग सखियों के बैठ हिंडोले
जब तुम पींग बढाती होगी
दूर कहीं बंसी की धुन फिर
मेरी याद दिलाती होगी

तुम्हे भी याद सताती होगी
पुरवईया जब आती होगी

बारिश के मौसम में जब
बादल से बूंद बरसती होगी
आँगन, गलियां, खेत, गाँव जब
पानी से भर जाते होंगे
और जाड़े की कड़क ठण्ड में
सर्दी जब बढ़ जाती होगी
बैठ अंगीठी के आगे तुम
जब जब आग सुलगाती होगी


तुम्हे भी याद सताती होगी
पुरवईया जब आती होगी
अम्बिया की डाली पर बैठी
जब भी कोयल गाती होगी

शुक्रवार, 2 दिसंबर 2011

खुश्क पत्तों का मुकद्दर ले कर





खुश्क    पत्तों    का    मुकद्दर    ले     कर
आग  के  शहर में रहता हूँ ऐक घर ले कर

खौफ़ मुझको न कभी तेज़ हवाओं का रहा
मैं बिखरा हूँ तेरे इश्क का हर असर ले कर

लोग बारिश से संभलने का हुनर पुछते रहे
मैं   लौटा  हूँ  आँखो  में  समनदर  ले  कर

खुश्क    पत्तों    का    मुकद्दर     ले    कर
आग  के  शहर में रहता हूँ ऐक घर ले कर

सोमवार, 28 नवंबर 2011

अनदेखे ख्वाब

तुम्हारे साथ के
कुछ भीगे सावन
अब भी गीले पड़े हैं
उम्र गुजर रही है
मगर होंठ
अब भी सिले पड़े हैं
कुछ चाहतों के दबे ख़त
कुछ ख्वाहिशों की अधूरी
ग़ज़ल
रात के दुसरे पहर में
अनदेखे ख्वाब
सिसक उठते हैं
और आँगन के
गमले में
पोधों के पत्ते
अब तक पीले पड़ें हैं

तुम्हारा नाम
नीली स्याही से
मेरी हथेलियों में
अब भी मिटा मिटा सा है
मुझे नहीं पता
मेरी किस्मत में तुम
कितनी हांसिल हो
चलो दूर सही
तुम मेरी हिचकियों में
अब भी शामिल हो !!

शुक्रवार, 25 नवंबर 2011

बहुत तन्हाईयाँ हैं मेरे हिस्से में...



बहुत तन्हाईयाँ हैं मेरे हिस्से में चुरा लो तुम
तुम्हारा साथ मेरी तनहाइयों से कुछ तो बेहतर है

ज़िन्दगी कब तलक देगी मुझे उपहार में धोका
चलो धोका सही पर ज़िन्दगी से कुछ तो बेहतर है

कभी बारिश कभी झूले कभी शबनम का मौसम था
चलो सब नम गए लेकिन किसी के गम से बेहतर है

है आदत हमको पीने की चलो मन मगर समझो
ये आदत यूँ ही रहने दो ये आदत हम से बेहतर है
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