"मचान" ख्वाबो और खयालों का ठौर ठिकाना..................© सर्वाधिकार सुरक्षित 2010-2013....कुमार संतोष

सोमवार, 28 नवंबर 2011

अनदेखे ख्वाब

तुम्हारे साथ के
कुछ भीगे सावन
अब भी गीले पड़े हैं
उम्र गुजर रही है
मगर होंठ
अब भी सिले पड़े हैं
कुछ चाहतों के दबे ख़त
कुछ ख्वाहिशों की अधूरी
ग़ज़ल
रात के दुसरे पहर में
अनदेखे ख्वाब
सिसक उठते हैं
और आँगन के
गमले में
पोधों के पत्ते
अब तक पीले पड़ें हैं

तुम्हारा नाम
नीली स्याही से
मेरी हथेलियों में
अब भी मिटा मिटा सा है
मुझे नहीं पता
मेरी किस्मत में तुम
कितनी हांसिल हो
चलो दूर सही
तुम मेरी हिचकियों में
अब भी शामिल हो !!

शुक्रवार, 25 नवंबर 2011

बहुत तन्हाईयाँ हैं मेरे हिस्से में...



बहुत तन्हाईयाँ हैं मेरे हिस्से में चुरा लो तुम
तुम्हारा साथ मेरी तनहाइयों से कुछ तो बेहतर है

ज़िन्दगी कब तलक देगी मुझे उपहार में धोका
चलो धोका सही पर ज़िन्दगी से कुछ तो बेहतर है

कभी बारिश कभी झूले कभी शबनम का मौसम था
चलो सब नम गए लेकिन किसी के गम से बेहतर है

है आदत हमको पीने की चलो मन मगर समझो
ये आदत यूँ ही रहने दो ये आदत हम से बेहतर है

मंगलवार, 22 नवंबर 2011

बन जाओ हमसफ़र

"बन जाओ हमसफ़र कि रहगुज़र का वासता,
कट जाऐ ये सफ़र ये तन्हा तन्हा रासता,
मिल गऐ हो तुम तो मुझे मेरे करम से,
वर्ना कहां मैं ज़िन्दगी तुझको तलाशता..!!"

शुक्रवार, 18 नवंबर 2011

दिल भी सूना सूना है

दुनियाँ  है  अंजानी  सी  और रास्ता  भी  अंजाना सा
तुम होते जो पास तो लगता कुछ जाना पहचाना सा

दूर  गए  हो  तुम  तो  जब  से  दिल भी सूना सूना है
आँगन  सूना  घर  भी   सूना  जैसे  एक  वीराना  सा

दिल की बातें दिल ही जाने मुझको इतना  मालूम है
तेरी  गलियों  में  फिरता  है  जैसे  एक   दीवाना  सा

जैसा  हूँ  में खुश  रहता हूँ  सबसे जब में ये कहता हूँ
सब  कहते  हैं  मुझको  लगता  ये तो एक बहाना सा
Related Posts with Thumbnails