
बहाना केवल एक नही था।
आँसू था वो मेघ नही था।
गिरती रुकती नमक की बनी।
गालो पर आसार छोड्ती ।
अविराम बहती रहती वह।
करुण वेदना कहती रहती वह।
गिरे कभी जब मोती बनकर ।
फिर तकीया उसको अपनाता।
अंक में भरकर प्यार से उसको सहलाता।
दिखलाता फिर स्वपन सुहाने।
गीत सुनाता कमनीय कंठ से कुछ जाने पहचाने।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
आपकी प्रतिक्रिया बहुमूल्य है !