मेरे टूटे हूऐ दिल की इतनी सी कहानी है,
होंठो पर सिकवा है आंखो में पानी है।
इस दौर मैं न जाने क्यो लोग परेशां हैं,
क्यो समझे ना वो दिवाने थोडी सी जिन्दगानी है।
हमने जिधर भी देखा एक खौफ का मंजर है,
सब लोग हैं चूप फिर भी हम सब को हैरानी है।
किसके लिए यहाँ पर अब कौन है जो रोता है,
आँखो मे अब सभी के वो खून-ऐ-जवानी है।
पहचाने से अब चेहरे अनजाने से लगते है,
ये भीड् से अब मुझको ये कैसी परेशानी है।
मेरे देश का अब ये क्या हाल हो गया है,
चुटकि भर खाना है मुट्ठी भर पानी है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
आपकी प्रतिक्रिया बहुमूल्य है !