"मचान" ख्वाबो और खयालों का ठौर ठिकाना..................© सर्वाधिकार सुरक्षित 2010-2013....कुमार संतोष

बुधवार, 28 जुलाई 2010

कहानी



मेरे टूटे हूऐ दिल की इतनी सी कहानी है,
होंठो पर सिकवा है आंखो में पानी है।

इस दौर मैं न जाने क्यो लोग परेशां हैं,
क्यो समझे ना वो दिवाने थोडी सी जिन्दगानी है।

हमने जिधर भी देखा एक खौफ का मंजर है,
सब लोग हैं चूप फिर भी हम सब को हैरानी है।

किसके लिए यहाँ पर अब कौन है जो रोता है,
आँखो मे अब सभी के वो खून-ऐ-जवानी है।

पहचाने से अब चेहरे अनजाने से लगते है,
ये भीड् से अब मुझको ये कैसी परेशानी है।

मेरे देश का अब ये क्या हाल हो गया है,
चुटकि भर खाना है मुट्ठी भर पानी है।

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