राह में भटकता फिर रहा अनजाने पथ पर
आशाओं के दीप जलाऐ
नतमस्तक है नया सवेरा
फूलों से मन अनुरंजित हो कर
ढूंढे वन वन चाह तुम्हारी
महक उठेगा सारा आलम
जब तुम होगे पास हमारे
नहीं सूझती राह पथिक को
अपने मन के राही हम हैं
मुङेगी जिधर पथ उस पर
चल देंगे हम आँखे मूंदे
और कभी जो खिले दिवाकर
किरणो से अपना दामन भर दे
और घटा सुधा बरसाऐ
नीले नीले अम्बर में फिर
त्रप्त भाव से तारें गायें
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