"मचान" ख्वाबो और खयालों का ठौर ठिकाना..................© सर्वाधिकार सुरक्षित 2010-2013....कुमार संतोष

शुक्रवार, 30 जुलाई 2010

नया सवेरा



दूर कहीं है आश तुम्हें पाने कि
राह में भटकता फिर रहा अनजाने पथ पर
आशाओं के दीप जलाऐ
नतमस्तक है नया सवेरा
फूलों से मन अनुरंजित हो कर
ढूंढे वन वन चाह तुम्हारी
महक उठेगा सारा आलम
जब तुम होगे पास हमारे
नहीं सूझती राह पथिक को
अपने मन के राही हम हैं
मुङेगी जिधर पथ उस पर
चल देंगे हम आँखे मूंदे
और कभी जो खिले दिवाकर
किरणो से अपना दामन भर दे
और घटा सुधा बरसाऐ
नीले नीले अम्बर में फिर
त्रप्त भाव से तारें गायें

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