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शुक्रवार, 2 दिसंबर 2011

खुश्क पत्तों का मुकद्दर ले कर





खुश्क    पत्तों    का    मुकद्दर    ले     कर
आग  के  शहर में रहता हूँ ऐक घर ले कर

खौफ़ मुझको न कभी तेज़ हवाओं का रहा
मैं बिखरा हूँ तेरे इश्क का हर असर ले कर

लोग बारिश से संभलने का हुनर पुछते रहे
मैं   लौटा  हूँ  आँखो  में  समनदर  ले  कर

खुश्क    पत्तों    का    मुकद्दर     ले    कर
आग  के  शहर में रहता हूँ ऐक घर ले कर

45 टिप्‍पणियां:

  1. वाह भाइ.. दिल बागबाग कर दिया. अरसे बाद ईतनी सुन्दर गजल मेली..

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  2. लोग बारिश से संभलने का हुनर पुछते रहे
    मैं लौटा हूँ आँखो में समनदर ले कर
    ...क्या बात है !

    जवाब देंहटाएं
  3. खौफ़ मुझको न कभी तेज़ हवाओं का रहा
    मैं बिखरा हूँ तेरे इश्क का हर असर ले कर

    लोग बारिश से संभलने का हुनर पुछते रहे
    मैं लौटा हूँ आँखो में समनदर ले कर
    Behtareen panktiyan!

    जवाब देंहटाएं
  4. शुक्रिया अरुण साथी जी, रश्मि प्रभा जी, अनुपमा त्रिपाठी जी, क्षमा जी, पसंद करने का बहुत बहुत शुक्रिया !

    जवाब देंहटाएं
  5. लोग बारिश से संभलने का हुनर पुछते रहे
    मैं लौट हूँ आँखो में समनदर ले कर
    .....बहुत खूब !

    जवाब देंहटाएं
  6. खुश्क पत्तों का मुकद्दर ले कर
    आग के शहर में रहता हूँ ऐक घर ले कर

    BADHIYA PRASTUTI.

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  7. ख़ूबसूरत भाव से सुसज्जित उम्दा रचना लिखा है आपने! सुन्दर प्रस्तुती!
    मेरे नये पोस्ट पर आपका स्वागत है-
    http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
    http://seawave-babli.blogspot.com/

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  8. कोमल भावो की बेहतरीन अभिवयक्ति.....

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  9. खौफ़ मुझको न कभी तेज़ हवाओं का रहा
    मैं बिखरा हूँ तेरे इश्क का हर असर ले कर

    Very appealing couplet !

    .

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  10. लोग बारिश से संभलने का हुनर पुछते रहे
    मैं लौटा हूँ आँखो में समनदर ले कर
    वाह!

    जवाब देंहटाएं
  11. लोग बारिश से संभलने का हुनर पुछते रहे
    मैं लौटा हूँ आँखो में समनदर ले कर

    खूब कहा...बहुत बढ़िया

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  12. मुकद्दर खुश्क पत्तों का..वाह!!!

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  13. लोग बारिश से संभलने का हुनर पुछते रहे
    मैं लौटा हूँ आँखो में समनदर ले कर

    बहुत खूबसूरत गज़ल ..

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  14. bahut khoob ....bas thoda aur badhaiye ...is gazal ko aur jeene ko jee chahta hai ...

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  15. कम शब्दों में ही
    ग़ज़ल को बयान कर दिया आपने
    "लोग बारिश से बहने का हुनर पूछते रहे..."
    वाह-वा !!

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  16. "लोग बारिश से (बचने) का हुनर पूछते रहे..."

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  17. मेरे कमेंट्स आज कल स्पैम में जा रहे हैं ... कृपया देख लें ...मैंने इस पर टिप्पणी की थी

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  18. खुश्क पत्तों का मुकद्दर ले कर
    आग के शहर में रहता हूँ ऐक घर ले कर

    ....बेहतरीन प्रस्तुति...हरेक शेर उम्दा..

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  19. लोग बारिश से संभलने का हुनर पुछते रहे
    मैं लौटा हूँ आँखो में समनदर ले कर

    शानदार ग़ज़ल।

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  20. खुश्क पत्तों का मुकद्दर ले कर
    आग के शहर में रहता हूँ ऐक घर ले कर...बहुत सुन्दर भाव..

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  21. लोग बारिश से संभलने का हुनर पुछते रहे
    मैं लौटा हूँ आँखो में समनदर ले कर
    जबरदस्त ... क्या गज़ब का शेर है संतोष जी ... सुभान अल्ला ...

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  22. I like the gazals of only two people, first one jagjit singh and second one your's.
    very nice;

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  23. लोग बारिश से संभलने का हुनर पुछते रहे
    मैं लौटा हूँ आँखो में समनदर ले कर...
    बहुत सुन्दर भाव..

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  24. लोग बारिश से संभलने का हुनर पुछते रहे
    मैं लौटा हूँ आँखो में समनदर ले कर Baut khoob.

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  25. बहुत बढ़िया रचना.....
    खौफ़ मुझको न कभी तेज़ हवाओं का रहा
    मैं बिखरा हूँ तेरे इश्क का हर असर ले कर
    वाह...

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  26. लोग बारिश से संभलने का हुनर पुछते रहे
    मैं लौटा हूँ आँखो में समनदर ले कर ..

    एक बार फिर से इस लाजवाब गज़ल को पढ़ रहा हूँ ... कमाल है ..

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  27. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  28. लोग बारिश से संभलने का हुनर पुछते रहे
    मैं लौटा हूँ आँखो में समनदर ले कर

    हरेक शेर उम्दा..
    बेहतरीन प्रस्तुति...

    जवाब देंहटाएं
  29. खुश्क पत्तों का मुकद्दर ले कर
    आग के शहर में रहता हूँ ऐक घर ले कर

    Vah santosh bhai ...badhai.

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