खुश्क पत्तों का मुकद्दर ले कर
आग के शहर में रहता हूँ ऐक घर ले कर
खौफ़ मुझको न कभी तेज़ हवाओं का रहा
मैं बिखरा हूँ तेरे इश्क का हर असर ले कर
लोग बारिश से संभलने का हुनर पुछते रहे
मैं लौटा हूँ आँखो में समनदर ले कर
खुश्क पत्तों का मुकद्दर ले कर
आग के शहर में रहता हूँ ऐक घर ले कर
वाह भाइ.. दिल बागबाग कर दिया. अरसे बाद ईतनी सुन्दर गजल मेली..
जवाब देंहटाएंलोग बारिश से संभलने का हुनर पुछते रहे
जवाब देंहटाएंमैं लौटा हूँ आँखो में समनदर ले कर
...क्या बात है !
bahut sunder likha hai ...
जवाब देंहटाएंbadhai .
खौफ़ मुझको न कभी तेज़ हवाओं का रहा
जवाब देंहटाएंमैं बिखरा हूँ तेरे इश्क का हर असर ले कर
लोग बारिश से संभलने का हुनर पुछते रहे
मैं लौटा हूँ आँखो में समनदर ले कर
Behtareen panktiyan!
शुक्रिया अरुण साथी जी, रश्मि प्रभा जी, अनुपमा त्रिपाठी जी, क्षमा जी, पसंद करने का बहुत बहुत शुक्रिया !
जवाब देंहटाएंलोग बारिश से संभलने का हुनर पुछते रहे
जवाब देंहटाएंमैं लौट हूँ आँखो में समनदर ले कर
.....बहुत खूब !
http://urvija.parikalpnaa.com/2011/12/blog-post_02.html
जवाब देंहटाएंखुश्क पत्तों का मुकद्दर ले कर
जवाब देंहटाएंआग के शहर में रहता हूँ ऐक घर ले कर
BADHIYA PRASTUTI.
ख़ूबसूरत भाव से सुसज्जित उम्दा रचना लिखा है आपने! सुन्दर प्रस्तुती!
जवाब देंहटाएंमेरे नये पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
http://seawave-babli.blogspot.com/
कोमल भावो की बेहतरीन अभिवयक्ति.....
जवाब देंहटाएंखौफ़ मुझको न कभी तेज़ हवाओं का रहा
जवाब देंहटाएंमैं बिखरा हूँ तेरे इश्क का हर असर ले कर
Very appealing couplet !
.
लोग बारिश से संभलने का हुनर पुछते रहे
जवाब देंहटाएंमैं लौटा हूँ आँखो में समनदर ले कर
वाह!
लोग बारिश से संभलने का हुनर पुछते रहे
जवाब देंहटाएंमैं लौटा हूँ आँखो में समनदर ले कर
खूब कहा...बहुत बढ़िया
मुकद्दर खुश्क पत्तों का..वाह!!!
जवाब देंहटाएंलोग बारिश से संभलने का हुनर पुछते रहे
जवाब देंहटाएंमैं लौटा हूँ आँखो में समनदर ले कर
बहुत खूबसूरत गज़ल ..
बहुत खूब सर!
जवाब देंहटाएंसादर
bahut khoob ....bas thoda aur badhaiye ...is gazal ko aur jeene ko jee chahta hai ...
जवाब देंहटाएंवाह ! बहुत खूब...
जवाब देंहटाएंसादर बधाई...
dard aur ishk se labalab gazal.
जवाब देंहटाएंकम शब्दों में ही
जवाब देंहटाएंग़ज़ल को बयान कर दिया आपने
"लोग बारिश से बहने का हुनर पूछते रहे..."
वाह-वा !!
"लोग बारिश से (बचने) का हुनर पूछते रहे..."
जवाब देंहटाएंआपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल आज 04 -12 - 2011 को यहाँ भी है
जवाब देंहटाएं...नयी पुरानी हलचल में आज .जोर का झटका धीरे से लगा
मेरे कमेंट्स आज कल स्पैम में जा रहे हैं ... कृपया देख लें ...मैंने इस पर टिप्पणी की थी
जवाब देंहटाएंक्या बात है. लाजवाब शेर हैं.
जवाब देंहटाएंवाह
जवाब देंहटाएंखुश्क पत्तों का मुकद्दर ले कर
जवाब देंहटाएंआग के शहर में रहता हूँ ऐक घर ले कर
....बेहतरीन प्रस्तुति...हरेक शेर उम्दा..
लोग बारिश से संभलने का हुनर पुछते रहे
जवाब देंहटाएंमैं लौटा हूँ आँखो में समनदर ले कर
शानदार ग़ज़ल।
अच्छी प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंखुश्क पत्तों का मुकद्दर ले कर
जवाब देंहटाएंआग के शहर में रहता हूँ ऐक घर ले कर...बहुत सुन्दर भाव..
nice Post Plz Visit:- http://hindi4tech.blogspot.com
जवाब देंहटाएंwah.. bahot sundar..
जवाब देंहटाएंलोग बारिश से संभलने का हुनर पुछते रहे
जवाब देंहटाएंमैं लौटा हूँ आँखो में समनदर ले कर
जबरदस्त ... क्या गज़ब का शेर है संतोष जी ... सुभान अल्ला ...
khubsurat sher daad ko muhtaj nahin .....
जवाब देंहटाएंI like the gazals of only two people, first one jagjit singh and second one your's.
जवाब देंहटाएंvery nice;
बहुत सुन्दर वाह!
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा!!
जवाब देंहटाएंलोग बारिश से संभलने का हुनर पुछते रहे
जवाब देंहटाएंमैं लौटा हूँ आँखो में समनदर ले कर...
बहुत सुन्दर भाव..
लोग बारिश से संभलने का हुनर पुछते रहे
जवाब देंहटाएंमैं लौटा हूँ आँखो में समनदर ले कर Baut khoob.
खूबसूरत रचना |
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया रचना.....
जवाब देंहटाएंखौफ़ मुझको न कभी तेज़ हवाओं का रहा
मैं बिखरा हूँ तेरे इश्क का हर असर ले कर
वाह...
amazing...
जवाब देंहटाएंbahut hi bhaavpoorna...
लोग बारिश से संभलने का हुनर पुछते रहे
जवाब देंहटाएंमैं लौटा हूँ आँखो में समनदर ले कर ..
एक बार फिर से इस लाजवाब गज़ल को पढ़ रहा हूँ ... कमाल है ..
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जवाब देंहटाएंलोग बारिश से संभलने का हुनर पुछते रहे
जवाब देंहटाएंमैं लौटा हूँ आँखो में समनदर ले कर
हरेक शेर उम्दा..
बेहतरीन प्रस्तुति...
खुश्क पत्तों का मुकद्दर ले कर
जवाब देंहटाएंआग के शहर में रहता हूँ ऐक घर ले कर
Vah santosh bhai ...badhai.