तुम्हे भी याद सताती होगी
पुरवईया जब आती होगी
अम्बिया की डाली पर बैठी
जब भी कोयल गाती होगी
सांझ ढले जब चाँद फलक पे
चुपके से आ जाता होगा
घर, आँगन तुलसी के आगे
तुम जब दीप जलाती होगी
तुम्हे भी याद सताती होगी
पुरवईया जब आती होगी
जब मंदिर में फूल चढाने
नंगे पावं बढाती होगी
जब ऊँची घंटी तक तेरे
हाँथ नहीं पहुचते होंगे
पंडित से लगवाने टीका
जब तू सर को झुकाती होगी
अपने संग मुझे न पाकर
आँख तेरी भर जाती होगी
तुम्हे भी याद सताती होगी
पुरवईया जब आती होगी
हाँथ पे मेहँदी से जब सखियाँ
नाम मेरा लिख जाती होंगी
तेरा दुपट्टा जब भी सर से
काँधे पर ढल जाता होगा
और आंटे से सने हाँथ से
रोटी जब तू बनाती होगी
आँचल को सर पर रखने को
जब आवाज़ लगाती होगी
तुम्हे भी याद सताती होगी
पुरवईया जब आती होगी
जब माथे पर ले कर मटका
पनघट से तुम आती होगी
जब भी सावन आता होगा
झूले जब भी पड़ते होंगे
संग सखियों के बैठ हिंडोले
जब तुम पींग बढाती होगी
दूर कहीं बंसी की धुन फिर
मेरी याद दिलाती होगी
तुम्हे भी याद सताती होगी
पुरवईया जब आती होगी
बारिश के मौसम में जब
बादल से बूंद बरसती होगी
आँगन, गलियां, खेत, गाँव जब
पानी से भर जाते होंगे
और जाड़े की कड़क ठण्ड में
सर्दी जब बढ़ जाती होगी
बैठ अंगीठी के आगे तुम
जब जब आग सुलगाती होगी
तुम्हे भी याद सताती होगी
पुरवईया जब आती होगी
अम्बिया की डाली पर बैठी
जब भी कोयल गाती होगी
पुरवईया जब आती होगी
अम्बिया की डाली पर बैठी
जब भी कोयल गाती होगी
सांझ ढले जब चाँद फलक पे
चुपके से आ जाता होगा
घर, आँगन तुलसी के आगे
तुम जब दीप जलाती होगी
तुम्हे भी याद सताती होगी
पुरवईया जब आती होगी
जब मंदिर में फूल चढाने
नंगे पावं बढाती होगी
जब ऊँची घंटी तक तेरे
हाँथ नहीं पहुचते होंगे
पंडित से लगवाने टीका
जब तू सर को झुकाती होगी
अपने संग मुझे न पाकर
आँख तेरी भर जाती होगी
तुम्हे भी याद सताती होगी
पुरवईया जब आती होगी
हाँथ पे मेहँदी से जब सखियाँ
नाम मेरा लिख जाती होंगी
तेरा दुपट्टा जब भी सर से
काँधे पर ढल जाता होगा
और आंटे से सने हाँथ से
रोटी जब तू बनाती होगी
आँचल को सर पर रखने को
जब आवाज़ लगाती होगी
तुम्हे भी याद सताती होगी
पुरवईया जब आती होगी
जब माथे पर ले कर मटका
पनघट से तुम आती होगी
जब भी सावन आता होगा
झूले जब भी पड़ते होंगे
संग सखियों के बैठ हिंडोले
जब तुम पींग बढाती होगी
दूर कहीं बंसी की धुन फिर
मेरी याद दिलाती होगी
तुम्हे भी याद सताती होगी
पुरवईया जब आती होगी
बारिश के मौसम में जब
बादल से बूंद बरसती होगी
आँगन, गलियां, खेत, गाँव जब
पानी से भर जाते होंगे
और जाड़े की कड़क ठण्ड में
सर्दी जब बढ़ जाती होगी
बैठ अंगीठी के आगे तुम
जब जब आग सुलगाती होगी
तुम्हे भी याद सताती होगी
पुरवईया जब आती होगी
अम्बिया की डाली पर बैठी
जब भी कोयल गाती होगी
Wah! Nihayat sundar rachana! Maza aa gaya padhke!
जवाब देंहटाएंबारिश के मौसम में जब
जवाब देंहटाएंबादल से बूंद बरसती होगी
आँगन, गलियां, खेत, गाँव जब
पानी से भर जाते होंगे
और जाड़े की कड़क ठण्ड में
सर्दी जब बढ़ जाती होगी....
बहुत हे सुंदर प्यार कि रंगों मेन जुदाई के भाव से सजी सुंदर रचना समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है।
http://mhare-anubhav.blogspot.com/
खूबसूरत रचना के लिए बधाई स्वीकार करें.
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना के लिए बधाई,......
जवाब देंहटाएंमेरी नई पोस्ट की चंद लाइनें पेश है....
सब कुछ जनता जान गई ,इनके कर्म उजागर है
चुल्लू भर जनता के हिस्से,इनके हिस्से सागर है,
छल का सूरज डूबेगा , नई रौशनी आयेगी
अंधियारे बाटें है तुमने, जनता सबक सिखायेगी,
पूरी रचना पढ़ने के लिए काव्यान्जलि मे click करे
बहुत कोमल भावों से रची सुन्दर रचना ..
जवाब देंहटाएंकविता में प्रयुक्त बिम्ब मन मोहते हैं।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर और भावुक प्रस्तुति....
जवाब देंहटाएंसबसे पहले हमारे ब्लॉग 'जज्बात....दिल से दिल तक' पर आपकी टिप्पणी का तहेदिल से शुक्रिया.........आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आना हुआ...........पहली ही पोस्ट दिल को छू गयी.......कितने खुबसूरत जज्बात डाल दिए हैं आपने..........बहुत खूब...........आज ही आपको फॉलो कर रहा हूँ ताकि आगे भी साथ बना रहे|
जवाब देंहटाएंकभी फुर्सत में हमारे ब्लॉग पर भी आयिए- (अरे हाँ भई, सन्डे को भी)
http://jazbaattheemotions.blogspot.com/
http://mirzagalibatribute.blogspot.com/
http://khaleelzibran.blogspot.com/
http://qalamkasipahi.blogspot.com/
एक गुज़ारिश है ...... अगर आपको कोई ब्लॉग पसंद आया हो तो कृपया उसे फॉलो करके उत्साह बढ़ाये|
बहुत ही सुन्दर ,हृदयस्पर्शी गीत.
जवाब देंहटाएंLajawab .. Dil mein utar jaata hai aapke ye geet Santoshji .... Bhavnaaon ka sagar ...
जवाब देंहटाएंबेहद खुबसूरत लिखा है . याद ऐसी ही होती है .
जवाब देंहटाएंआप सभी लोगों का तहे दिल से शुक्रिया !
जवाब देंहटाएंइन्तेज़ार की बेकरारी में डूबे सुन्दर जज़्बात ...
जवाब देंहटाएंहाँथ पे मेहँदी से जब सखियाँ
जवाब देंहटाएंनाम मेरा लिख जाती होंगी
तेरा दुपट्टा जब भी सर से
काँधे पर ढल जाता होगा
और आंटे से सने हाँथ से
रोटी जब तू बनाती होगी
आँचल को सर पर रखने को
जब आवाज़ लगाती होगी
तुम्हे भी याद सताती होगी
पुरवईया जब आती होगी.....
Wonderful creation !
.
earlier I was thinking that you write gazals only but after reading your poem, I have to say that you write beautiful poems too;;
जवाब देंहटाएंlike it;; nice one;;
वाह ...बहुत ही अच्छा लिखा है आपने ...बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंभला इस पुरवईया को कौन भूल सकता है. आपके ब्लॉग का नाम मचान जो है, वाकई मन को आकर्षित कर लेता है. आपने बचपन की याद दिला दी जो इन पर ही न जाने कितने समय बीते. बहुत ही सुंदर प्रस्तुति....
जवाब देंहटाएंशहर कब्बो रास न आईल
साहब का कुत्ता
वाह!!!!!बहुत सुंदर कविता,...अच्छी पोस्ट....
जवाब देंहटाएंमेरी नई पोस्ट की चंद लाइनें पेश है....
आफिस में क्लर्क का, व्यापार में संपर्क का.
जीवन में वर्क का, रेखाओं में कर्क का,
कवि में बिहारी का, कथा में तिवारी का,
सभा में दरवारी का,भोजन में तरकारी का.
महत्व है,...
पूरी रचना पढ़ने के लिए काव्यान्जलि मे click करे
ये 'पुरवैया' शब्द सुनते ही न जाने क्यूँ भारतीय जन-मानस अचानक ही भाव-विभोर हो उठता है। सुंदर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भाव .....
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुती जी
जवाब देंहटाएंवाह ... बहुत खूब ...इस बेहतरीन प्रस्तुति के लिये बधाई ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भाव . बेहतरीन प्रस्तुति...बधाई..
जवाब देंहटाएंआप सभी गुनीजनो का तहे दिल से शुक्रिया
जवाब देंहटाएंbahut sunder :)
जवाब देंहटाएंअनूठी रचना.वाह,क्या बात है.
जवाब देंहटाएंBAHUT HI SUNDAR es blog par der se pahooncha par aab regular rahoonga touch main.
जवाब देंहटाएंऔर जाड़े की कड़क ठण्ड में
जवाब देंहटाएंसर्दी जब बढ़ जाती होगी
बैठ अंगीठी के आगे तुम
जब जब आग सुलगाती होगी
vah .... santosh ji ap ne to shama badh diya ... badhai .