तुम्हे देखे बिना गुजरेगा क्या ये भी साल, लगता है
तुम्हारा ज़िक्र तुम्हारी बात जब आती है महफ़िल में
आईने पर उदासी देखना भी क्यों कमाल लगता है
तुम्हारे अक्स से करता हूँ बातें तन्हा स्याह रातों में
तुम्हारे अक्स से बेहतर क्यों तुम्हारा ख़याल लगता है
चांदनी रात कट जाती है यूँ तो, अक्सर जागते तन्हा
अश्क से भीगा हुआ तकिया मुझे क्यों रुमाल लगता है
कोई जब पूछता, कैसे जीते हो "संतोष" उसके बिन तन्हा
हँसी में टाल देता हूँ मुश्किल बहुत ये सवाल लगता है
तुम्हारा ज़िक्र तुम्हारी बात जब आती है महफ़िल में
जवाब देंहटाएंआईने पर उदासी देखना भी क्यों कमाल लगता है
Bahut khoob! Mere dono blogs pe aap aaye...tahe dil se shukriya!
मुनासिब हो तो ख्वाबों में चले आओ तुम पल भर को
जवाब देंहटाएंतुम्हे देखे बिना गुजरेगा क्या ये भी साल, लगता है..कोमल भावो की बेहतरीन अभिवयक्ति.....
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जवाब देंहटाएंकोई जब पूछता, कैसे जीते हो "संतोष" उसके बिन तन्हा
जवाब देंहटाएंहसी में टाल देता हूँ मुश्किल बहुत ये सवाल लगता है
बहुत उम्दा रचना ....
तुम्हारे अक्श से करता हूँ बातें तन्हा स्याह रातों में
जवाब देंहटाएंतुम्हारे अक्श से बेहतर क्यों तुम्हारा ख़याल लगता है
kya kahne....
तुम्हारा ज़िक्र तुम्हारी बात जब आती है महफ़िल में
जवाब देंहटाएंआईने पर उदासी देखना भी क्यों कमाल लगता है
बहुत खूब ... अच्छी गज़ल
बहुत बढ़िया संतोष जी...हर शेर लाजवाब..
जवाब देंहटाएंकुछ टाइपिंग की गलतियाँ है उन्हें सुधार लीजिए..
अक्श की जगह अक्स
और हसी को हँसी कर दीजिए....hope u don't mind :-)
विद्या जी बहुत बहुत शुक्रिया !
जवाब देंहटाएंगलतियाँ सुधार ली हैं धन्यवाद !
कोई जब पूछता, कैसे जीते हो "संतोष" उसके बिन तन्हा
जवाब देंहटाएंहँसी में टाल देता हूँ मुश्किल बहुत ये सवाल लगता है
बहुत खूब ............ खूबसूरत ग़ज़ल|
बहुत सुन्दर....
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएं....
गहन दर्द भरे एहसास ...मर्म को छू गयी ये रचना ...
जवाब देंहटाएंआप तो बहुत प्यारा लिखती हैं..बधाई. 'पाखी की दुनिया' में भी आपका स्वागत है.
जवाब देंहटाएंबहुत खूब
जवाब देंहटाएंGyan Darpan
.
बहुत ही खुबसूरत ग़ज़ल वाह वाह
जवाब देंहटाएंमर्म को छूती सुन्दर रचना.. बहुत बढ़िया संतोष जी.
जवाब देंहटाएंek se badh kar ek sher...bahut hi umda gazal.
जवाब देंहटाएंमर्मस्पर्शी रचना और सुन्दर प्रस्तुति |
जवाब देंहटाएंबधाई |
आशा
'कैसे जीते हो संतोष'? प्रेम की पराकाष्ठा।
जवाब देंहटाएंचांदनी रात कट जाती है यूँ तो, अक्सर जागते तन्हा
जवाब देंहटाएंअश्क से भीगा हुआ तकिया मुझे क्यों रुमाल लगता है
क्या बात हैं ..बहुत खूब ...
क्या बात हैं .. सुन्दर रचना जी
जवाब देंहटाएं"कोई जब पूछता, कैसे जीते हो "संतोष" उसके बिन तन्हा
जवाब देंहटाएंहँसी में टाल देता हूँ मुश्किल बहुत ये सवाल लगता है"
वाकई में बहुत मुश्किल सवाल है.....
बहुत ख़ूबसूरत और भावपूर्ण रचना लिखा है आपने! दिल को छू गई हर एक पंक्तियाँ! लाजवाब प्रस्तुती!
जवाब देंहटाएंतुम्हारा ज़िक्र तुम्हारी बात जब आती है महफ़िल में
जवाब देंहटाएंआईने पर उदासी देखना भी क्यों कमाल लगता है
वाह ...बहुत खूब कहा है आपने ...बधाई के साथ शुभकामनाएं ।
jeena muhaal, per jeena to hai ...
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंसुन्दर भाव लिए रचना |
जवाब देंहटाएंआशा
मन को छू गई आपकी ये रचना.. बहुत बहुत शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंकोई जब पूछता, कैसे जीते हो "संतोष" उसके बिन तन्हा
जवाब देंहटाएंहँसी में टाल देता हूँ मुश्किल बहुत ये सवाल लगता है
कमाल की पंक्तियाँ लिखी हैं आपने, मन को छू गयीं...आभार!
लाज़वाब..
जवाब देंहटाएंक्रिसमस की हार्दिक शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंमेरे नये पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
bahut sundar
जवाब देंहटाएंwww.poeticprakash.com