"मचान" ख्वाबो और खयालों का ठौर ठिकाना..................© सर्वाधिकार सुरक्षित 2010-2013....कुमार संतोष

शुक्रवार, 29 अक्टूबर 2010

ज़िंदगी

ज़िंदगी को हादसे की तरह देखा
कभी छुआ कभी फेंका
कल्पनाओं की लड़ियाँ सजाता रहा
खुद से दूर जाती चीज़ को बुलाता रहा
दूर तक देर तक
अनजाने चेहरे से अपना सवाल दोहराता रहा
सब घूरते थे गुज़र जाते थे
मेरे सपने जो अनमोल थे मेरे लिए
गिरते थे टूट कर बिखर जाते थे

बुधवार, 20 अक्टूबर 2010

पलछिन

आँखे........
"सनम" 

आपकी आँखे 
बहुत खूबसूरत हैं
हमसे बहुत कुछ कह देती हैं
इनका ख्याल रखना
क्योंकि
कोई है
जो इन्हें देखकर
अपनी जिंदगी जीता है !

खवाब..........
तुम मिले
तो खवाबो से
दोस्ती हो गई
जब तुम सामने थी
तो ख्वाब
आँखों के सामने था
अब नहीं हो तो
ख्वाब आँखों के भीतर हैं !

यादें.......
कब सोंचा था
की ख्वाब यादों में
सील से जायेंगे
तुम्हे हो न हो
मुझे
अब भी याद है
तुम्हारे ख्वाब
शब्दों की रेशमी शाल ओढ़े
वो छोटा सा घर हो
जगह मुख़्तसर हो
ज़रा भी हम घूमे
बस टकरा से जाएँ !

रविवार, 17 अक्टूबर 2010

"तुम"

"तुम" को तोडा मैंने जब भी
अक्षर मैंने दो पाया 
"तू" से तुम हो "म" से मैं हूँ
राज़ समझ मैं जब आया
तुम तो केवल तुम नहीं हो
मैं भी केवल मैं ही नहीं हूँ
या फिर कह लो हम ही हम हैं
फिर काहे की बात का गम हैं
तोड़ो मोड़ो शब्द बनाओ
"तू" से तुम्हारा "म" से मन है
कुछ शीतल है कुछ चन्दन हैं
कुछ शीतलता मुझको दे दो
मैं भी कुछ चन्दन हो जाऊँ

और कभी फिर निश्चल भाव से तुमको पाऊँ
"म" से मेरा "तू" से तुम्हारा
जो मेरा वो सब है तुम्हारा
हमारा कह ले जब हम ही हम हैं
फिर काहे की बात का गम हैं
तोड़ो मोड़ो शब्द बनाओ
"तू" से तुम हो "म" से मैं हूँ  !!

सोमवार, 11 अक्टूबर 2010

मैं हूँ प्रियवर प्राण तुम्हारा

मैं हूँ प्रियवर प्राण तुम्हारा
तुम कोमल रजनीगंधा हो
मैं हूँ रात अमावस काली
तुम अनमोल सुगंध संध्या हो

मैं वीणा तुम तार हो सखी
मैं चाहत तुम प्यार हो सखी
तुम हो सात स्वरों में रंजित
ऋतू वर्षा मल्हार हो सखी

मैं कपास अवांछित वन का
तुम पुलकित पलाश उपवन का
मृग-तृष्णा मैं मरुस्थल में
तुम सुगन्धित चन्दन वन का

शुक्रवार, 8 अक्टूबर 2010

वर दे वर दे हे माँ दुर्गे


वर दे,     वर दे,    हे     माँ दुर्गे
पाठक  से  मेरा ब्लॉग तू भर दे

ब्लोगिंग  लगे रीत  अब न्यारी
रिश्तों    की   भी    जिम्मेवारी 
रूठी   पत्नी  प्रिय   अति प्यारी
उसे   मनाने   का   अवसर  दे



वर दे,    वर दे,     हे    माँ दुर्गे

जो  लिखूं   वो  हिट  हो जाये
लिखूं   मलता  फिट हो जाये
टिप्पणी अनलिमिट हो जाये

ब्लोगिंग का  ऐसा तू हुनर दे 

वर दे,   वर दे,    हे    माँ दुर्गे

रस,  अलंकार, छंद, उपमाएँ
लिखे चुटकुलों पर कवितायेँ 
बेनामी  भी  सर  को झुकाएँ
हो  जाये  कुछ  मंतर  कर दे


वर दे,   वर दे,   हे    माँ दुर्गे

ब्लोगिंग का चर्चा है यार में 
नाम  हो  गया  कारोबार में
घूमू  बनकर  सेठ   कार  में
ऐसी   लाटरी   मेरे   घर  दे


वर दे,   वर दे,  हे    माँ दुर्गे


आप सभी को नवरात्रि के पावन पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं !

मंगलवार, 5 अक्टूबर 2010

आज और कल हर एक पल

यूँ ही कभी जाने अनजाने तुम्हारा ख्याल जब भी ज़हन पर यादों की सिलवटें बन जाया करता है तो चाहतों में तुम्हारे लिए अब भी दुआएँ ही निकलती हैं ! फकत दुआएँ !


आज और कल
हर एक पल
कस्तूरी की महक में
डूबी हुई शाम की तरह
एक नाम के साथ
एहसास का नयापन
हजारो लाखो तारों के बीच
अकेला चाँद
सिर्फ तुम
तुम्हारा नाम
कुछ चांदनी
कुछ सुनहरी रात
दामन में तुम्हारे
बिखरे हर पल
एक स्तब्ध हलचल
तुम्हारे घर आना हो खुशियों का
दरवाजे पर
नई शाम का पहरा
कुछ बादल
कुछ ऊँचे पर्वत
रंग बिरंगी तितलियों के पर
आँगन में
और एक
नन्ही सी तुलसी
रात की काजल मैं भीगी
शबनम की खुशबू
धुंआ-धुंआ सा उड़ता बादल
आज और कल
हर एक पल

शुक्रवार, 1 अक्टूबर 2010

लालच के बंधन को तोड़ो



अपना  तो  बस  यही  नारा   है
जो  मिला  हमें  वही  प्यारा  है
जो  नहीं  मिला   उसको  छोड़ो
लालच   के   बंधन   को  तोड़ो

जितना हो भाग्य  में मिलता है
मेहनत  का फूल भी खिलता है
बिन हवा शाख कब  हिलता है 
कोशिस करना तुम मत छोड़ो
लालच  के   बंधन   को  तोड़ो

मत  आस  करो हक़ से ज्यादा
मत  बनो   रास्ते  की   बाधा
अब  बीत  चूका जीवन आधा 
मन  का  रिश्ता जन से जोड़ो
लालच  के  बंधन  को   तोड़ो  

जागो  मन से कुछ काम करो
निष्पाप  करो निष्काम  करो 
मत  व्यर्थ  यूँही  आराम करो
जीवन पथ  को सच से जोड़ो
लालच  के  बंधन  को  तोड़ो

जो  कहा  सुना सब माफ़  करो
मन  की   दुर्बलता  साफ़  करो
मानवता  का   इन्साफ   करो
गुण को लो अवगुण को छोड़ो
लालच  के  बंधन   को  तोड़ो

है जन्म लिया इस धरती पर
माँ  के  चरणों  में  है  अम्बर
दुष्टों   के   चालो   में   आकर
मत मात पिता को तुम छोड़ो
लालच  के  बंधन   को  तोड़ो

करना, मन में  जब  ठानी है
जीवन  तो  बहता  पानी  है
जब खून में जोश जवानी है
धमनी में रक्त सा तुम दौड़ो
लालच  के  बंधन को तोड़ो

तुम विजय रहो निर्माण करो
भारत के वीर सपूत  हो तुम
मत मातृभूमि का दान करो
विषधर  के  सर  को  फोड़ो 
लालच  के  बंधन  को तोड़ो
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