ज़िंदगी को हादसे की तरह देखा
कभी छुआ कभी फेंका
कल्पनाओं की लड़ियाँ सजाता रहा
खुद से दूर जाती चीज़ को बुलाता रहा
दूर तक देर तक
अनजाने चेहरे से अपना सवाल दोहराता रहा
सब घूरते थे गुज़र जाते थे
मेरे सपने जो अनमोल थे मेरे लिए
गिरते थे टूट कर बिखर जाते थे
शुक्रवार, 29 अक्टूबर 2010
बुधवार, 20 अक्टूबर 2010
पलछिन
आँखे........
"सनम"
आपकी आँखे
बहुत खूबसूरत हैं
हमसे बहुत कुछ कह देती हैं
इनका ख्याल रखना
क्योंकि
कोई है
जो इन्हें देखकर
अपनी जिंदगी जीता है !
खवाब..........
तुम मिले
तो खवाबो से
दोस्ती हो गई
जब तुम सामने थी
तो ख्वाब
आँखों के सामने था
अब नहीं हो तो
ख्वाब आँखों के भीतर हैं !
यादें.......
कब सोंचा था
की ख्वाब यादों में
सील से जायेंगे
तुम्हे हो न हो
मुझे
अब भी याद है
तुम्हारे ख्वाब
शब्दों की रेशमी शाल ओढ़े
वो छोटा सा घर हो
जगह मुख़्तसर हो
ज़रा भी हम घूमे
बस टकरा से जाएँ !
"सनम"
आपकी आँखे
बहुत खूबसूरत हैं
हमसे बहुत कुछ कह देती हैं
इनका ख्याल रखना
क्योंकि
कोई है
जो इन्हें देखकर
अपनी जिंदगी जीता है !
खवाब..........
तुम मिले
तो खवाबो से
दोस्ती हो गई
जब तुम सामने थी
तो ख्वाब
आँखों के सामने था
अब नहीं हो तो
ख्वाब आँखों के भीतर हैं !
यादें.......
कब सोंचा था
की ख्वाब यादों में
सील से जायेंगे
तुम्हे हो न हो
मुझे
अब भी याद है
तुम्हारे ख्वाब
शब्दों की रेशमी शाल ओढ़े
वो छोटा सा घर हो
जगह मुख़्तसर हो
ज़रा भी हम घूमे
बस टकरा से जाएँ !
रविवार, 17 अक्टूबर 2010
"तुम"
"तुम" को तोडा मैंने जब भी
अक्षर मैंने दो पाया
"तू" से तुम हो "म" से मैं हूँ
राज़ समझ मैं जब आया
तुम तो केवल तुम नहीं हो
मैं भी केवल मैं ही नहीं हूँ
या फिर कह लो हम ही हम हैं
फिर काहे की बात का गम हैं
तोड़ो मोड़ो शब्द बनाओ
"तू" से तुम्हारा "म" से मन है
कुछ शीतल है कुछ चन्दन हैं
कुछ शीतलता मुझको दे दो
मैं भी कुछ चन्दन हो जाऊँ
और कभी फिर निश्चल भाव से तुमको पाऊँ
"म" से मेरा "तू" से तुम्हारा
जो मेरा वो सब है तुम्हारा
हमारा कह ले जब हम ही हम हैं
फिर काहे की बात का गम हैं
तोड़ो मोड़ो शब्द बनाओ
"तू" से तुम हो "म" से मैं हूँ !!
अक्षर मैंने दो पाया
"तू" से तुम हो "म" से मैं हूँ
राज़ समझ मैं जब आया
तुम तो केवल तुम नहीं हो
मैं भी केवल मैं ही नहीं हूँ
या फिर कह लो हम ही हम हैं
फिर काहे की बात का गम हैं
तोड़ो मोड़ो शब्द बनाओ
"तू" से तुम्हारा "म" से मन है
कुछ शीतल है कुछ चन्दन हैं
कुछ शीतलता मुझको दे दो
मैं भी कुछ चन्दन हो जाऊँ
और कभी फिर निश्चल भाव से तुमको पाऊँ
"म" से मेरा "तू" से तुम्हारा
जो मेरा वो सब है तुम्हारा
हमारा कह ले जब हम ही हम हैं
फिर काहे की बात का गम हैं
तोड़ो मोड़ो शब्द बनाओ
"तू" से तुम हो "म" से मैं हूँ !!
सोमवार, 11 अक्टूबर 2010
मैं हूँ प्रियवर प्राण तुम्हारा
मैं हूँ प्रियवर प्राण तुम्हारा
तुम कोमल रजनीगंधा हो
मैं हूँ रात अमावस काली
तुम अनमोल सुगंध संध्या हो
मैं वीणा तुम तार हो सखी
मैं चाहत तुम प्यार हो सखी
तुम हो सात स्वरों में रंजित
ऋतू वर्षा मल्हार हो सखी
मैं कपास अवांछित वन का
तुम पुलकित पलाश उपवन का
मृग-तृष्णा मैं मरुस्थल में
तुम सुगन्धित चन्दन वन का
शुक्रवार, 8 अक्टूबर 2010
वर दे वर दे हे माँ दुर्गे
वर दे, वर दे, हे माँ दुर्गे
पाठक से मेरा ब्लॉग तू भर दे
ब्लोगिंग लगे रीत अब न्यारी
रिश्तों की भी जिम्मेवारी
रूठी पत्नी प्रिय अति प्यारी
उसे मनाने का अवसर दे
वर दे, वर दे, हे माँ दुर्गे
जो लिखूं वो हिट हो जाये
लिखूं मलता फिट हो जाये
टिप्पणी अनलिमिट हो जाये
ब्लोगिंग का ऐसा तू हुनर दे
वर दे, वर दे, हे माँ दुर्गे
रस, अलंकार, छंद, उपमाएँ
लिखे चुटकुलों पर कवितायेँ
बेनामी भी सर को झुकाएँ
हो जाये कुछ मंतर कर दे
वर दे, वर दे, हे माँ दुर्गे
ब्लोगिंग का चर्चा है यार में
नाम हो गया कारोबार में
घूमू बनकर सेठ कार में
ऐसी लाटरी मेरे घर दे
वर दे, वर दे, हे माँ दुर्गे
आप सभी को नवरात्रि के पावन पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं !
मंगलवार, 5 अक्टूबर 2010
आज और कल हर एक पल
यूँ ही कभी जाने अनजाने तुम्हारा ख्याल जब भी ज़हन पर यादों की सिलवटें बन जाया करता है तो चाहतों में तुम्हारे लिए अब भी दुआएँ ही निकलती हैं ! फकत दुआएँ !
आज और कल
हर एक पल
कस्तूरी की महक में
डूबी हुई शाम की तरह
एक नाम के साथ
एहसास का नयापन
हजारो लाखो तारों के बीच
अकेला चाँद
सिर्फ तुम
तुम्हारा नाम
कुछ चांदनी
कुछ सुनहरी रात
दामन में तुम्हारे
बिखरे हर पल
एक स्तब्ध हलचल
तुम्हारे घर आना हो खुशियों का
दरवाजे पर
नई शाम का पहरा
कुछ बादल
कुछ ऊँचे पर्वत
रंग बिरंगी तितलियों के पर
आँगन में
और एक
नन्ही सी तुलसी
रात की काजल मैं भीगी
शबनम की खुशबू
धुंआ-धुंआ सा उड़ता बादल
आज और कल
हर एक पल
आज और कल
हर एक पल
कस्तूरी की महक में
डूबी हुई शाम की तरह
एक नाम के साथ
एहसास का नयापन
हजारो लाखो तारों के बीच
अकेला चाँद
सिर्फ तुम
तुम्हारा नाम
कुछ चांदनी
कुछ सुनहरी रात
दामन में तुम्हारे
बिखरे हर पल
एक स्तब्ध हलचल
तुम्हारे घर आना हो खुशियों का
दरवाजे पर
नई शाम का पहरा
कुछ बादल
कुछ ऊँचे पर्वत
रंग बिरंगी तितलियों के पर
आँगन में
और एक
नन्ही सी तुलसी
रात की काजल मैं भीगी
शबनम की खुशबू
धुंआ-धुंआ सा उड़ता बादल
आज और कल
हर एक पल
शुक्रवार, 1 अक्टूबर 2010
लालच के बंधन को तोड़ो
अपना तो बस यही नारा है
जो मिला हमें वही प्यारा है
जो नहीं मिला उसको छोड़ो
लालच के बंधन को तोड़ो
जितना हो भाग्य में मिलता है
मेहनत का फूल भी खिलता है
बिन हवा शाख कब हिलता है
कोशिस करना तुम मत छोड़ो
लालच के बंधन को तोड़ो
मत आस करो हक़ से ज्यादा
मत बनो रास्ते की बाधा
अब बीत चूका जीवन आधा
मन का रिश्ता जन से जोड़ो
लालच के बंधन को तोड़ो
जागो मन से कुछ काम करो
निष्पाप करो निष्काम करो
मत व्यर्थ यूँही आराम करो
जीवन पथ को सच से जोड़ो
लालच के बंधन को तोड़ो
जो कहा सुना सब माफ़ करो
मन की दुर्बलता साफ़ करो
मानवता का इन्साफ करो
गुण को लो अवगुण को छोड़ो
लालच के बंधन को तोड़ो
है जन्म लिया इस धरती पर
माँ के चरणों में है अम्बर
दुष्टों के चालो में आकर
मत मात पिता को तुम छोड़ो
लालच के बंधन को तोड़ो
करना, मन में जब ठानी है
जीवन तो बहता पानी है
जब खून में जोश जवानी है
धमनी में रक्त सा तुम दौड़ो
लालच के बंधन को तोड़ो
तुम विजय रहो निर्माण करो
भारत के वीर सपूत हो तुम
मत मातृभूमि का दान करो
विषधर के सर को फोड़ो
लालच के बंधन को तोड़ो
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