मैं हूँ प्रियवर प्राण तुम्हारा
तुम कोमल रजनीगंधा हो
मैं हूँ रात अमावस काली
तुम अनमोल सुगंध संध्या हो
मैं वीणा तुम तार हो सखी
मैं चाहत तुम प्यार हो सखी
तुम हो सात स्वरों में रंजित
ऋतू वर्षा मल्हार हो सखी
मैं कपास अवांछित वन का
तुम पुलकित पलाश उपवन का
मृग-तृष्णा मैं मरुस्थल में
तुम सुगन्धित चन्दन वन का
सुंदर लय में प्यार पगी रचना.
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत रचना .
जवाब देंहटाएंमैं हूँ प्रियवर प्राण तुम्हारा
जवाब देंहटाएंतुम कोमल रजनीगंधा हो
प्रेम समर्पण चाहता है ....
और आपकी कविता में यह मुखरित होकर प्रकट हुआ है .....
बहुत सुंदर ....!!
अनामिका जी, संगीता स्वरुप जी, हरकीरत जी आप सभी का बहुत बहुत शुक्रिया !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर गीत.
जवाब देंहटाएंआपका लिखा यह गीत भी बहुत सुंदर है … बधाई !
जवाब देंहटाएंवन्दना जी, राजेन्द्र जी आप दोनों का बहुत बहुत धन्यवाद इस गीत को पसंद करने के लिए
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