"मचान" ख्वाबो और खयालों का ठौर ठिकाना..................© सर्वाधिकार सुरक्षित 2010-2013....कुमार संतोष

सोमवार, 11 अक्टूबर 2010

मैं हूँ प्रियवर प्राण तुम्हारा

मैं हूँ प्रियवर प्राण तुम्हारा
तुम कोमल रजनीगंधा हो
मैं हूँ रात अमावस काली
तुम अनमोल सुगंध संध्या हो

मैं वीणा तुम तार हो सखी
मैं चाहत तुम प्यार हो सखी
तुम हो सात स्वरों में रंजित
ऋतू वर्षा मल्हार हो सखी

मैं कपास अवांछित वन का
तुम पुलकित पलाश उपवन का
मृग-तृष्णा मैं मरुस्थल में
तुम सुगन्धित चन्दन वन का

7 टिप्‍पणियां:

  1. मैं हूँ प्रियवर प्राण तुम्हारा
    तुम कोमल रजनीगंधा हो

    प्रेम समर्पण चाहता है ....
    और आपकी कविता में यह मुखरित होकर प्रकट हुआ है .....
    बहुत सुंदर ....!!

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  2. अनामिका जी, संगीता स्वरुप जी, हरकीरत जी आप सभी का बहुत बहुत शुक्रिया !

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  3. वन्दना जी, राजेन्द्र जी आप दोनों का बहुत बहुत धन्यवाद इस गीत को पसंद करने के लिए

    जवाब देंहटाएं

आपकी प्रतिक्रिया बहुमूल्य है !

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