"मचान" ख्वाबो और खयालों का ठौर ठिकाना..................© सर्वाधिकार सुरक्षित 2010-2013....कुमार संतोष

शनिवार, 28 अगस्त 2010

विरह वेदना

विरह वेदना क्या कहूँ तुमसे मुझको तुम अपना लो गंगा
खडी  तुम्हारे  सम्मुख  मैं   हूँ खुद  में  मुझे समा लो गंगा
राह   देखती   सांझ  सवेरे
कब  आएँगे  प्रियतम मेरे
कैसे   होंगे   दूर   देश   में
चिंता  रहती   मुझको  घेरे
कब  तक  रहूं में बाट जोगती  अब तो  उन्हे बुला दो गंगा
विरह वेदना क्या कहूँ तुमसे मुजको तुम अपना लो गंगा
जबसे पिया परदेश गये तुम
लगता  है  हमे भूल गये तुम
कोई   भी   संदेश  ना  आया
बिटिया भी रहती है गुमसुम
खुशियाँ  रूठ गई इस घर से खुशियाँ  फिर छलका दो गंगा
विरह वेदना क्या कहूँ  तुमसे मुझको तुम अपना लो गंगा
बिंदिया काजल झुमके कंगन
सुना   घर   है  सुना   आँगन
सजने की  अब  चाह भी नही
सब कुछ सादा है बिन साजन
रूप   देख  कर  आजाएँ  वापस  ऐसा  मुझे  बना  दो गंगा
विरह वेदना क्या कहूँ तुमसे मुझको तुम अपना लो गंगा

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