विरह वेदना क्या कहूँ तुमसे मुझको तुम अपना लो गंगा
खडी तुम्हारे सम्मुख मैं हूँ खुद में मुझे समा लो गंगा
राह देखती सांझ सवेरे
कब आएँगे प्रियतम मेरे
कैसे होंगे दूर देश में
चिंता रहती मुझको घेरे
कब तक रहूं में बाट जोगती अब तो उन्हे बुला दो गंगा
विरह वेदना क्या कहूँ तुमसे मुजको तुम अपना लो गंगा
जबसे पिया परदेश गये तुम
लगता है हमे भूल गये तुम
कोई भी संदेश ना आया
बिटिया भी रहती है गुमसुम
खुशियाँ रूठ गई इस घर से खुशियाँ फिर छलका दो गंगा
विरह वेदना क्या कहूँ तुमसे मुझको तुम अपना लो गंगा
बिंदिया काजल झुमके कंगन
सुना घर है सुना आँगन
सजने की अब चाह भी नही
सब कुछ सादा है बिन साजन
रूप देख कर आजाएँ वापस ऐसा मुझे बना दो गंगा
विरह वेदना क्या कहूँ तुमसे मुझको तुम अपना लो गंगा
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