"मचान" ख्वाबो और खयालों का ठौर ठिकाना..................© सर्वाधिकार सुरक्षित 2010-2013....कुमार संतोष

शनिवार, 7 अगस्त 2010

जीवन दर्पण

प्रतिछण कंचन तन म्रदलोचन
दुर्लभ पावन मन मुख चन्दन
निशा सुन्दरी अतुलित अनुगामी
म्रगनयनी चंचल श्यामवर्णी
ज़ीवन संध्या रूप तुम्हारा
आतुर मन अकुलित अन्धियारा
अभिन्न प्राण वायु फैलाती
मंद मंद लहरो की बूंदे गिरी क्रोङ मे मोती बनकर
म्रगत्रष्णा आँचल नभ ऊपर
एक नवीन सबल करूणा तुम
आशावान निरंकुश चाहत
अनिशिचत काल वेदना वंदन
मै करता प्रति्छण तुम्हारा

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