"मचान" ख्वाबो और खयालों का ठौर ठिकाना..................© सर्वाधिकार सुरक्षित 2010-2013....कुमार संतोष

सोमवार, 2 अगस्त 2010

हमने मांगी है दुआ तुम्हें पाने कि




हमने    मांगी   है   दुआ  तुम्हें  पाने  कि,
लग  न  जाये  नज़र  कहीं  ज़माने  कि।

मुद्दतो     बाद     उठाई      है      कलम,
लिखूं  कौन सी गज़ल तुम्हे मनाने कि।

ऐक चेहरा है तेरा आँखो से हटता हि नहीं,
दाद  देता  है  ज़माना  इस   निशाने  कि।

डूबना      चाहता    हूँ    आँखो   में   तेरी,
मैं   रास्ता  कैसे   ढूंडू  इस  मैख़ाने  कि।

जी  नहीं  सकता  हूँ  तेरे  बगैर  एक  पल,
है  इन्तज़ार  मुझे अब तो मौत आने कि।

हमने  मांगी   है   दुआ   तुम्हें   पाने  कि,
लग  न   जाये  नज़र  कहीं   ज़माने  कि।

5 टिप्‍पणियां:

  1. शानदार, सुन्दर!
    ----------------

    डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'

    लेखक जयपुर से प्रकाशित पाक्षिक समाचार-पत्र प्रेसपालिका के सम्पादक, होम्योपैथ चिकित्सक, मानव व्यवहारशास्त्री, दाम्पत्य विवादों के सलाहकार, विविन्न विषयों के लेखक, टिप्पणीकार, कवि, शायर, चिन्तक, शोधार्थी, तनाव मुक्त जीवन, लोगों से काम लेने की कला, सकारात्मक जीवन पद्धति आदि विषयों के व्याख्याता तथा समाज एवं प्रशासन में व्याप्त नाइंसाफी, भेदभाव, शोषण, भ्रष्टाचार, अत्याचार और गैर-बराबरी आदि के विरुद्ध राष्ट्रीय स्तर पर संचालित संगठन-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास) के मुख्य संस्थापक एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष भी हैं। जिसमें तक 4399 रजिस्टर्ड आजीवन कार्यकर्ता देश के 17 राज्यों में सेवारत हैं। फोन नं. 0141-2222225 (सायं 7 से 8 बजे)। Email : dr.purushottammeena@yahoo.in

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  2. "ऐक चेहरा है तेरा आँखो से हटता ही नहीं,
    दाद देता है ज़माना इस निशाने की"

    बहुत खूब

    जवाब देंहटाएं
  3. शुक्रिया आप सभी लोगों का जिन्होने मेरे इस प्रयास को इतना सराहा


    आपका विनीत
    संतोष.

    जवाब देंहटाएं
  4. इस सुंदर से नए चिट्ठे के साथ आपका हिंदी ब्‍लॉग जगत में स्‍वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!

    जवाब देंहटाएं
  5. हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
    कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें

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