वो तो हर एक बात पर ग़ज़ल लिखता है
नादाँ है जो दरबे को महल लिखता है
लिखने को तो लिख दूंगा दास्तान-ऐ-मोहब्बत
मगर कौन है जो सच्चाई आज कल लिखता है
करता अगर वो बातें सागर के किनारे की
कुँओं की ख़ामोशी भी को हलचल लिखता है
होते हैं कुछ दीवाने दुनीयाँ मैं इनके जैसे
महबूब को वो अपने ताजमहल लिखता है
चुभ जाते हैं पैरों में जब कांटे गुलिस्ताँ के
वो दीवाना है कांटो को जो कमल लिखता है
वो वक़्त हुआ काफूर खुशियों का जब चलन था
अब आंसूओं के किस्से हर पल लिखता है
सारे जहाँ की रौनक बस्ती थी उसके घर में
वो बटवारे हुए घर को जंगल लिखता है
bahoot khoob
जवाब देंहटाएंप्रिय बंधु संतोष कुमार जी
जवाब देंहटाएंबढ़िया भाव हैं , और भी श्रेष्ठ लिखने की पूरी संभावनाएं हैं …
शुभकामनाएं …
- राजेन्द्र स्वर्णकार