"मचान" ख्वाबो और खयालों का ठौर ठिकाना..................© सर्वाधिकार सुरक्षित 2010-2013....कुमार संतोष

शुक्रवार, 17 सितंबर 2010

कुछ न कुछ लेकर ही आना

बहुत सी जातक कथाएँ, लोक कथाएँ पढ़ी हैं, मगर उससे जयादा सुनी हैं ( बाबु जी से ) ! बाबु जी के पास जीवन की हर छोटी बड़ी घटनाओ को लेकर एक न एक कहानी जुबानी रहती है ! हर बात के पीछे " वो कहानी है ना " जोड़ देना उनके लिए सहज है ! आज शाम को ऑफिस से घर आया तो घरवालों के याद दिलाने पर याद आया कि मैं माँ की दवाई लाना भूल गया हूँ ! इससे पहले सभी दुकान बंद हो जाती मैं नुक्कड़ पर केमिस्ट की दुकान से दवाई ले आया ! रात को खाना खाते वक़्त बाबु जी ने कहा ..."आज तुम दवाई लाना भूल गए हो, और कभी भी अपनी मर्ज़ी से कुछ भी खरीद कर नहीं लाते हो घर मैं, कल से रोज़ कुछ न कुछ लाना होगा वरना घर के अंदर आने की मनाही होगी !"  मैंने कहा... " ये क्या बात हुई, कुछ न कुछ से क्या मतलब है ? "
बाबु जी बोले... " कुछ न कुछ से मतलब है कुछ भी जैसे फल, सब्जी, मिठाई, कपडे, लकड़ी, पत्थर,मिटटी  कुछ भी"
मैं मन ही मन हँसा मगर चेहरे पर गंभीरता बनी रही !  मैंने कहा...
" ये सब समझा मगर पत्थर, लकड़ी, इन सब चीजों का क्या फायदा, इन सब का क्या होगा ?"
मेरे मन में उठ रहे सवाल को ख़तम करने के लिए बाबु जी ने एक कहानी सुनानी शुरू की..




एक राज्य में गरीब ब्राह्मन अपनी धर्म पत्नी के साथ रहता था ! दूसरों के घर में पूजा अनुष्टान करने पर जो धन प्राप्त होता उससे उनका गुजर बसर हो जाता था ! कभी कभी दान में अनाज और फल भी मिल जाया करता था ! मगर कुछ दिनों से ब्राह्मण को न ही पूजा अनुष्टान के लिए कोई आमंत्रित करता और उसे कोई दान भी नहीं मिल रहा था ! ब्राह्मण शाम को रोज़ खाली हाँथ घर आने लगा ! एक दिन ब्राह्मण की पत्नी बोली आप रोज़ खाली हाँथ घर आ जाते हो इस तरह गुजर कैसे होगा, कल से आप रोज़ कुछ न कुछ लेकर ही आना मगर खाली हाँथ मत आना ! ब्राह्मण सोंचने लगा की आज कल कोई पूजा अनुष्टान तो करवा नहीं रहा, दान भी मुश्किल से कभी कभी मिलता है, अब ऐसे में रोज़ क्या लेकर आऊं, ! अगले दिन सुबह सुबह ही ब्राह्मण घर से निकल गया कि शायद आज कुछ धन का इंतजाम हो जायेगा मगर शाम तक ब्राह्मण ने न ही कुछ धन कमाए और न ही कहीं से कोई दान मिला ! वापस आते समय उसे अपनी पत्नी की बात याद आई कि उसने कहा है की कुछ न कुछ जरूर लाना है ! ब्राह्मण सोंचने लगा की अब घर क्या लेकर जाऊं ! जंगल से घर की तरफ जाते समय ब्राह्मण को ख्याल आया की क्यों न आज जंगल से लकड़ियाँ ही उठा लूं ! ब्राह्मण जंगल में से पेढ की टूटी लकड़ियाँ उठाने लगा और उन्हें जमा करके घर ले आया ! घर आकर पत्नी से कहा की तुमने कहा था कुछ न कुछ जरूर लाना तो आज मैं ये लकड़ियाँ लाया हूँ ! पत्नी ने उन लकड़ियों के गट्ठर को आँगन में रख दिया ! अगले दिन ब्राह्मण की पत्नी उन लकड़ियों के गट्ठर को बेच कर जो धन प्राप्त हुआ उससे अनाज खरीद लाइ ! कई दिनों तक यही सिलसिला चलता रहा, जब भी ब्राह्मण को किसी दिन धन या दान नहीं मिलता वो जंगल से लकड़ियाँ उठा लाता ! एक रोज़ ब्राह्मण को न ही धन मिला, न ही दान और न ही वन में गिरी हुई लकड़ियाँ ! ब्राह्मण ये सोंच कर बहुत दुखी हुआ की आज घर क्या लेकर जाऊंगा, आज तो वन मैं सूखी लकड़ियाँ भी नहीं है ! तभी जंगल में उसने एक मरा हुआ सांप देखा ! ब्राह्मण उसे उठाकर घर की तरफ चल दिया ये सोंचता हुआ की आज हो न हो उसकी पत्नी उस पर जरूर नाराज़ होगी ! घर पहुच कर उसने अपनी पत्नी से कहा की आज सिर्फ ये मरा हुआ सांप मिला है, इसे हीं लेकर आया हूँ ! ये सुनकर ब्राह्मण की पत्नी बोली कोई बात नहीं कुछ तो लेकर आये हो न, इसे बहार आँगन में रख दो ! अगले दिन सुबह ब्राह्मण धन कमाने के लिए रोज़ की तरह घर से निकल गया ! राजमहल में महारानी ने नित्य स्नान के लिए अपने आभूषण उतार कर जैसे ही रखे, एक चील कहीं से उड़ता हुआ आया और उन आभूषण में से बेश कीमती हार अपनी चोंच में दबाकर ले उड़ा ! उड़ता हुआ चील जब ब्राह्मण के घर के ऊपर से जा रहा था तो उसकी नज़र मरे हुए सांप पर पड़ी ! चील अपना भोजन देख नीचे उतरा और उस हार को वहीँ छोड़ मरे हुए सांप को अपनी चोंच में दबा कर ले उड़ा ! उधर महारानी का हार खो जाने पर राजा ने हर और मुनादी करवा दी कि जो भी कोई महारानी का हार ढूँढ कर लायेगा उसे उच्च पुरूस्कार से सम्मानित किया जायेगा ! ये खबर सुनकर ब्राह्मण अपनी पत्नी के साथ गया और उसने वो हार राजा को सौप दिया ! राजा ने ब्राह्मण को धन से पुरुस्कृत किया और उसकी इमानदारी को देख कर अपनी राज्य का राज पुरोहित बना दिया !

मैं बाबु जी से कहानी सुनकर बहुत खुश हुआ ! जिस भी कहानी का अंत सुखद हो मन को बहुत ख़ुशी मिलती है ! फिर भी मैंने मन ही मन सोंचा की अब वो जमाना है कहाँ, जब सच्चाई और इमानदारी पर पुरस्कार मिलते थे ! आज कोई इसकी सराहना ही कर दे वही बहुत होता है ! मगर सच और इमानदारी के राह पर चलने वालों को इस बात से कोई सरोकार नहीं होता कि कोई उसकी इमानदारी या सच्चाई कि कद्र करता है या नहीं, वो तो बस सच्चाई और इमानदारी को ही अपना जीवन मान कर चलते रहते हैं !

7 टिप्‍पणियां:

  1. ये मैंने भी सूना है कि कभी खाली हाथ लौट के घर नहीं आना चाहिए
    आज आपके लेख ने इसकी पुष्टि कर दी

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  2. बहुत ही सुंदर आपका लेख भी और आपके बाबूजी की कहानी भी ....

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  3. मगर सच और इमानदारी के राह पर चलने वालों को इस बात से कोई सरोकार नहीं होता कि कोई उसकी इमानदारी या सच्चाई कि कद्र करता है या नहीं, वो तो बस सच्चाई और इमानदारी को ही अपना जीवन मान कर चलते रहते हैं !

    सार्थक सन्देश देती अच्छी प्रस्तुति

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  4. अच्छा संदेश देता आलेख।

    सादर

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  5. बचपन में हमने भी यह कथा बड़े-बूढों की जुबानी सुनी है... डायरी के पन्नों का यह संकलन आनंद आ गया... आपसे निवेदन है कि अपनी रचनाएँ फेसबुक के हिंदी साहित्य ग्रुप में रखें और साहित्य-प्रेमियों को रसस्वादन का अवसर प्रदान करें... आभार...
    ग्रुप का पता है, https://www.facebook.com/groups/jayhindi/

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