"मचान" ख्वाबो और खयालों का ठौर ठिकाना..................© सर्वाधिकार सुरक्षित 2010-2013....कुमार संतोष

गुरुवार, 29 दिसंबर 2011

एक ख़्वाब जो पलकों पर ठहर जाता है


एक    ख़्वाब    जो    पलकों    पर    ठहर  जाता   है
तेरी   याद   बन  के    आंसू   सा   बिखर   जाता   है 

 एक   लम्हे    में    हज़ारों    पल   गुजर    जाते   हैं 
एक    पल    में    कई    लम्हा   संवर    जाता    है

वो    भी   हंसता    है   साथ   जब    हंसता   हूँ   मैं
जब    रोता    हूँ   तो   वो   जाने   किधर   जाता   है

जुदा    होता   हूँ   तो   ख्यालों   में   चला   जाता  हूँ
वो   जुदा    हो    के    अपने   घर   चला   जाता   है

बात   करता   है   मज़ाक   में   बिछड़   जाने    की
दिल    हर   बार  इस   मज़ाक   से   डर   जाता   है

हज़ारों     कोशिशें    कर    ली   मनाने    की   उसे
लोग    कहते   हैं  कि   जाने   दे   अगर   जाता   है

है  अगर   प्यार   तेरा   सच्चा  तो   लौट  आऐगा
फरेब    एक    उमर    बाद   तो    मर    जाता    है

दर्द-ऐ-दिल  दिल  में ही  रहने दो "कुमार" तुम इसको
ये   उभर   जाऐ   तो    इसका   भी   असर   जाता  है

शनिवार, 24 दिसंबर 2011

अनमने से ख़याल

कुछ अनसुलझे, अनमने से ख़याल यूँ ही ज़हन में बरस जाते हैं...और दस्तक दे जाते हैं उन सोई हुई, डरी सी, सहमी हुई यादों को जिन्हें फिर से जीना एक युग गुजर जाने के समान है !
आज भी मैं उन पगडंडियों पर से रोज़ गुजरता हूँ, जहाँ बरसो पहले तुम्हारे पांव में कांटा चुभा था !
अब वो कांटा मेरे पांव में रोज़ चुभता है..... ये चुभन ही मेरे दर्द को सकूं पहुचाते हैं.......!




 जिंदगी     तुझसे     तो     कुछ      गिला     नहीं,
जिसे    दिल    से   चाहा    बस   वो  मिला   नहीं,
यूँ     तो     हज़ारो    लोग    जिंदगी    में    मिले, 
कोई  दिल   से   न  मिला, किसी से दिल मिला नहीं !





भुलना मुशकिल है उसे जो मुझे भुला गया,
हो  के  मुझसे  दूर  जो  मुझको  रूला  गया,
ख़ुदा   करे   वो  ख़ुश   रहे   जहां    भी   रहे,
कोई तो सूने दिल  में  कलियाँ  खिला गया !

बुधवार, 21 दिसंबर 2011

ख्वाबों में चले आओ




मुनासिब हो तो ख्वाबों में चले आओ तुम पल भर को
तुम्हे देखे बिना  गुजरेगा क्या ये भी  साल, लगता  है

तुम्हारा ज़िक्र  तुम्हारी  बात जब आती है महफ़िल में
आईने  पर  उदासी  देखना  भी क्यों  कमाल  लगता है

तुम्हारे अक्स  से करता  हूँ बातें  तन्हा स्याह रातों  में
तुम्हारे अक्स से बेहतर क्यों तुम्हारा ख़याल लगता है

चांदनी रात कट जाती  है  यूँ तो,  अक्सर  जागते तन्हा
अश्क से भीगा हुआ तकिया मुझे क्यों रुमाल लगता है

कोई जब पूछता, कैसे जीते हो "संतोष" उसके बिन तन्हा
हँसी   में  टाल देता हूँ  मुश्किल  बहुत ये सवाल लगता है

गुरुवार, 15 दिसंबर 2011

तुम्हे भी याद सताती होगी

तुम्हे भी याद सताती होगी
पुरवईया जब आती होगी
अम्बिया की डाली पर बैठी
जब भी कोयल गाती होगी
सांझ ढले जब चाँद फलक पे
चुपके से आ जाता होगा
घर, आँगन तुलसी के आगे
तुम जब दीप जलाती होगी

तुम्हे भी याद सताती होगी
पुरवईया जब आती होगी

जब मंदिर में फूल चढाने
नंगे पावं बढाती होगी
जब ऊँची घंटी तक तेरे
हाँथ नहीं पहुचते होंगे
पंडित से लगवाने टीका
जब तू सर को झुकाती होगी
अपने संग मुझे न पाकर
आँख तेरी भर जाती होगी
   
तुम्हे भी याद सताती होगी
पुरवईया जब आती होगी

हाँथ पे मेहँदी से जब सखियाँ
नाम मेरा लिख जाती होंगी 
तेरा दुपट्टा जब भी सर से
काँधे पर ढल जाता होगा
और आंटे से सने हाँथ से
रोटी जब तू बनाती होगी
आँचल को सर पर रखने को
जब आवाज़ लगाती होगी

तुम्हे भी याद सताती होगी
पुरवईया जब आती होगी

जब माथे पर ले कर मटका
पनघट से तुम आती होगी
जब भी सावन आता होगा
झूले जब भी पड़ते होंगे
संग सखियों के बैठ हिंडोले
जब तुम पींग बढाती होगी
दूर कहीं बंसी की धुन फिर
मेरी याद दिलाती होगी

तुम्हे भी याद सताती होगी
पुरवईया जब आती होगी

बारिश के मौसम में जब
बादल से बूंद बरसती होगी
आँगन, गलियां, खेत, गाँव जब
पानी से भर जाते होंगे
और जाड़े की कड़क ठण्ड में
सर्दी जब बढ़ जाती होगी
बैठ अंगीठी के आगे तुम
जब जब आग सुलगाती होगी


तुम्हे भी याद सताती होगी
पुरवईया जब आती होगी
अम्बिया की डाली पर बैठी
जब भी कोयल गाती होगी

शुक्रवार, 2 दिसंबर 2011

खुश्क पत्तों का मुकद्दर ले कर





खुश्क    पत्तों    का    मुकद्दर    ले     कर
आग  के  शहर में रहता हूँ ऐक घर ले कर

खौफ़ मुझको न कभी तेज़ हवाओं का रहा
मैं बिखरा हूँ तेरे इश्क का हर असर ले कर

लोग बारिश से संभलने का हुनर पुछते रहे
मैं   लौटा  हूँ  आँखो  में  समनदर  ले  कर

खुश्क    पत्तों    का    मुकद्दर     ले    कर
आग  के  शहर में रहता हूँ ऐक घर ले कर

सोमवार, 28 नवंबर 2011

अनदेखे ख्वाब

तुम्हारे साथ के
कुछ भीगे सावन
अब भी गीले पड़े हैं
उम्र गुजर रही है
मगर होंठ
अब भी सिले पड़े हैं
कुछ चाहतों के दबे ख़त
कुछ ख्वाहिशों की अधूरी
ग़ज़ल
रात के दुसरे पहर में
अनदेखे ख्वाब
सिसक उठते हैं
और आँगन के
गमले में
पोधों के पत्ते
अब तक पीले पड़ें हैं

तुम्हारा नाम
नीली स्याही से
मेरी हथेलियों में
अब भी मिटा मिटा सा है
मुझे नहीं पता
मेरी किस्मत में तुम
कितनी हांसिल हो
चलो दूर सही
तुम मेरी हिचकियों में
अब भी शामिल हो !!

शुक्रवार, 25 नवंबर 2011

बहुत तन्हाईयाँ हैं मेरे हिस्से में...



बहुत तन्हाईयाँ हैं मेरे हिस्से में चुरा लो तुम
तुम्हारा साथ मेरी तनहाइयों से कुछ तो बेहतर है

ज़िन्दगी कब तलक देगी मुझे उपहार में धोका
चलो धोका सही पर ज़िन्दगी से कुछ तो बेहतर है

कभी बारिश कभी झूले कभी शबनम का मौसम था
चलो सब नम गए लेकिन किसी के गम से बेहतर है

है आदत हमको पीने की चलो मन मगर समझो
ये आदत यूँ ही रहने दो ये आदत हम से बेहतर है

मंगलवार, 22 नवंबर 2011

बन जाओ हमसफ़र

"बन जाओ हमसफ़र कि रहगुज़र का वासता,
कट जाऐ ये सफ़र ये तन्हा तन्हा रासता,
मिल गऐ हो तुम तो मुझे मेरे करम से,
वर्ना कहां मैं ज़िन्दगी तुझको तलाशता..!!"

शुक्रवार, 18 नवंबर 2011

दिल भी सूना सूना है

दुनियाँ  है  अंजानी  सी  और रास्ता  भी  अंजाना सा
तुम होते जो पास तो लगता कुछ जाना पहचाना सा

दूर  गए  हो  तुम  तो  जब  से  दिल भी सूना सूना है
आँगन  सूना  घर  भी   सूना  जैसे  एक  वीराना  सा

दिल की बातें दिल ही जाने मुझको इतना  मालूम है
तेरी  गलियों  में  फिरता  है  जैसे  एक   दीवाना  सा

जैसा  हूँ  में खुश  रहता हूँ  सबसे जब में ये कहता हूँ
सब  कहते  हैं  मुझको  लगता  ये तो एक बहाना सा

गुरुवार, 20 अक्टूबर 2011

दिल में अभी दर्द का तूफ़ान बाकी है

दिल  में  अभी  दर्द  का  तूफ़ान  बाकी  है
इस  इश्क का होना अभी अंजाम बाकी है

आँधियों  में  बह  गऐ  हैं  तिनके - तिनके
खुद के बिखरने का बस अरमान बाकी  है

जिस  घर  को  सजाया  था हांथो  से  अपने
उस घर  का  बिखरा  हुआ सामान बाकी है

माना की ज़ख्म भर  गया  जो तूने दिया था
लेकिन अभी उस ज़ख्म का निशान बाकी है

दुनियाँ  मे  हर  शय  से  पाया है सिर्फ धोका
अब आज़माने को बस ऐक भगवान बाकी है

सोमवार, 22 अगस्त 2011

कोई रंज भी नहीं कोई मलाल भी नहीं

कोई रंज भी  नहीं कोई  मलाल भी नहीं
तेरी बेवफाई  पर कोई सवाल भी नहीं

मैं टूट के बिखर जाऊँगा सदा के लिए
तेरी महोब्बत में ऐसा बुरा हाल भी नहीं

कैसे यकीन कर लूँ मैं फिर से तुझ पर
ज़ख्म खाए गुज़रा एक साल भी नहीं

सुनते थे किस्से तुझ जैसे सितमगर के
तेरे सितम से बढ़कर मिसाल भी नहीं

शनिवार, 30 जुलाई 2011

मैं शायर हूँ, मुझे पत्थर दिल ना समझ लेना

"ज़ख्म ख़ामोश हैं जो हमने खाऐ थे ज़माने से

उसे हर पल कुरेदा ज़िन्दगी ने सौ बहाने से

मैं शायर हूँ, मुझे पत्थर दिल ना समझ लेना

कोई भी टूट सकता है इतना आज़माने से..."

मंगलवार, 26 जुलाई 2011

रात सरगोशी से जब ख्वाब चले आते हैं

रात सरगोशी से जब ख्वाब चले आते हैं
बीते  लम्हे वो  बेहिसाब  चले  आते  हैं

लोग  लाते   हैं   तेरे  पास किमती तोफ़े
ले कर हांथो में हम गुलाब चले आते हैं

टूटे प्यालो का गम होता है तो होता रहे
आँखो से पी कर हम शराब चले आते हैं

रोज़ मिलते हैं बन के गैर मुझे महफ़िल में
मुझे हर बार जलाने, जनाब चले आते हैं

बुधवार, 6 जुलाई 2011

दर्द जब हद से गुजर जाये तो हँस देता हूँ

दर्द  जब हद  से गुजर जाये तो हँस देता हूँ
गम जब दिल में उतर जाये तो हँस देता हूँ

अब तो महफ़िल में डसती है तन्हाई मुझको
कोई मुझसा मुझे मिल जाये तो हँस देता हूँ

जिंदगी  का  मैं  सताया  हूँ  मुझे  गर   कोई
ये  कहता  है  तू  मर  जाये  तो  हँस देता हूँ

वक़्त  के  राज़  छुपाये  हैं  कई इस दिल में
राज़ जब आँख से बह  जाये तो हँस देता हूँ

तास के पत्तों का बनता हूँ मकां रफ्ता रफ्ता 
शक की आंधी में बिखर जाये तो हँस देता हूँ
  

शनिवार, 18 जून 2011

ये बारिशें भी तुम सी हैं

ये बारिशें भी तुम सी हैं
कभी कभी तो मूसलाधार
कभी कभी गुमसुम सी हैं
ये बारिशें भी तुम सी हैं
जो खुश हुई तो रिमझिम सी फुहार
जो रूठ गई तो बरसती बेशुमार
कभी कभी बे मौसम सी हैं
ये बारिशें भी तुम सी हैं
कभी धूप में कभी छाओं में
कभी शहर में कभी गाँव में
कभी इंद्रधनुष के बगैर ही
कभी इंद्रधनुष की पनाहो में
ये मीठी मीठी धुन सी हैं
ये बारिशें भी तुम सी हैं

बुधवार, 11 मई 2011

ख़ामोशी की भी एक ज़ुबां होती है

ख़ामोशी  की  भी एक ज़ुबां  होती  है
आँखों में भी अनकही दास्ताँ होती है

बिना  लफ़्ज़ों  के  सुने  कोई  दिल की ज़ुबां
मगर जिंदगी कब हर वक़्त मेहरबाँ होती है 

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यादों से आज  मेरी मुलाक़ात हो गई
जो बात तेरी निकली तो रात हो गई

तुझसे जुदाई वाले जो पल मुझे मिले

आसमां भी रो पड़ा और बरसात हो गई

गुरुवार, 5 मई 2011

उस मौसम की हर एक बरसातें याद हैं

वो  बातें  याद हैं,  वो सारी  रातें याद  हैं
मुझे  अब तक सारी  मुलाकातें याद  हैं


भिगोया  था जब मैंने तुमको सफ़र मैं
उस मौसम की हर एक बरसातें याद हैं


वो  खुशबू  भरे  ख़त गुलाबों में लिपटे
जो  भिजवाए  थे सारी सौगातें याद हैं


वो इश्क की बातें, मोहब्बत के किस्से
दुनियाँ की रश्में, वो सवालातें याद हैं


बेहतर है भुला दूँ  जो जीना है मुझको
मगर  कैसे  भुला  दूँ  जो बातें याद हैं

शुक्रवार, 29 अप्रैल 2011

नींद बहुत कम है आज कल

नींद बहुत कम है आज कल
जाने क्या गम है आज कल

दिल भरा-भरा सा रहता है

आँखे भी नम है आज कल

तू नहीं है जिंदगी में मेरी
सिर्फ तेरा भरम है आज कल


भूलने को शराब है लेकिन
मुझे तेरी कसम है आज कल

तनहाइयों से दोस्ती हो गई
महफिलों का सितम है आज कल

रविवार, 13 फ़रवरी 2011

आदतन

वक़्त,
आज फिर तेरी
देहलीज़ से गुजरा
ख्वाब के टुकड़े पड़े थे राह में
चंद साँसे बैठ कर
सोंचा वहाँ
रातरानी फिर से

बो दूँ राह में
खुशबुओं की
फिर फसल लहरायेगी
डाल पर झूले पड़ेंगे प्यार के
फिर हवा जुल्फों से खेलेंगी कहीं
कोयलें छेड़ेंगी राग मल्हार के
 

फिर मेरे आँखों में आँसू आ गया
दफ्न वो ख़त है
अभी तक सीने में
तुम गई
तो साथ खुशियाँ भी गई
अब कहाँ खुशबू मिलेगी जीने में
रातरानी उग भी जाये
तो भी क्या
वो हवा और कोयलें
देखेंगी तेरा रास्ता !

बुधवार, 9 फ़रवरी 2011

पलछिन

मैं और मेरी हमनफस
(1) अंकुर.......
कल शाम 
खयालो की पोटली 
भिगोई थी
आज देखा तो
उनमे अंकुर निकल आये हैं
आज शाम जब मिलोगी
तो चाशनी के साथ
तुम्हे परोसुंगा !


(२) निशानी.......
याद है 
तुम्हे चूड़ियाँ पहनाते वक़्त
मेरी उंगुली कट गई थी
वो जख्म
जिस पर तुमने
मलहम लगाया था
उसे मैंने
फिर से कुरेद दिया है
तुम्हारे जाने के बाद
कुछ तो तुम्हारी निशानी होनी चाहिए !

शुक्रवार, 21 जनवरी 2011

बेवफा जिंदगी

बेवफा जिंदगी 
ढूंढता दरबदर
इस शहर, उस शहर 
गली-गली, डगर-डगर 
ठोकरें मिली फकत
था आंसुओं का एक नगर
न जाने कब डुबो गई
वो नफरतों की एक लहर 
वो वक़्त था, सशक्त था 
बहता रगों में रक्त सा 
कुछ दास्ताँ थी अनकही 
पर कहने से लगता था डर
साहिल पर गीली रेत का
ख्वाबों में था छोटा सा घर 
मासूम सा एक ख्वाब था 
डुबो गई जिसे लहर
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